Vikrant Massey-Kriti Kharbanda film 14 Phere now streaming on Zee5
इस देश में शादी का लड्डू तो हर किसी को खाना हैं मगर अपनी मनपसंद का लड्डू बहुत कम लोगो को ही नसीब हो पाता हैं। बात यहाँ पसंद नापसंद से ज्यादा हिम्मत की हैं क्यूंकि इस देश में आज भी शादी के लड्डू से ज्यादा अहमियत समाज के सुख और समाज के बनाये नियमो को दी जाती हैं। अपनी पसंद का शादी का लड्डू वही खा पाता हैं जो इस समाज के बनाये नियम और छोटी सोच को तोड़ने की हिम्मत रखता हैं। मनोज कालवानी द्वारा लिखी और देवांशु सिंह द्वारा निर्देशित 14 फेरे भी इसी हिम्मत को दर्शाती हैं, साथ में जातिवाद-पितृसत्ता जैसे मुद्दों पर नए तरीके से तमाचा मारने का प्रयास करती हैं।
फिल्म की कहानी
फिल्म की कहानी कॉलेज की रैगिंग से शुरू होकर लिव इन को दिखाते हुए शादी तक पहुँचती है। इस फिल्म के मुख्य किरदार हैं संजय लाल सिंह (विक्रांत मैसी) और अदिति करवासरा (कृति खरबंदा), संजय बिहार के हैं तो वहीं अदिति राजस्थान की। दोनों ने प्रेम तो कर लिया हैं और दोनों के बीच सब सिंपल हैं मगर इन दोनों का परिवार काफी कॉम्प्लीकेटेड हैं। दोनों के ही परिवार वाले लव मैरिज के एक दम खिलाफ होते हैं। कृति की किरदार यानी अदिति एक जगह बोलती हैं कि उसके पापा को तो फिल्मों में भी लव मैरिज अच्छी नहीं लगती। इस फिल्म का एक प्लॉट पुराना सा ज़रूर हैं मगर इसमें नया भी बहुत कुछ हैं। बाकी फिल्मों की तरह इस फिल्म के किरदार शादी करने के लिए ना भागते हैं और न ही परिवार वालों को मनाने में जुटते हैं। बल्कि वो तो एक नए तरीके से शादी की प्लानिंग करते हैं। दोनों शादी करने के लिए अपनी जाति का एक नकली परिवार बनाते है। उनके इस नकलीपन का पता उनके असली माता पिता को लगता हैं या नहीं ? इन दोनों की प्रेम कहानी 7 फेरे के बजाय 14 फेरे लेकर भी शादी की फिनिश लाइन तक पहुँच पाती हैं या नहीं ? इन सवालों का जवाब जानने के लिए आपको ज़ी5 पर यह फिल्म देखनी होगी।
अदाकारी की बात
इस फिल्म में अदाकारी की बात करे तो विक्रांत ने एक बार फिर से अपनी अदाकारी का जादू दिखाया हैं और अपने किरदार को जीवंतता के करीब लाया हैं। वही कृति खरबंदा ने भी अच्छी कोशिश की हैं हालांकि विक्रांत के सामने थोड़ी फीकी ज़रूर नज़र आयी है। मगर कृति ने बिहारी व राजस्थानी लहजे को काफी अच्छे से पकड़ा हैं। विक्रांत की एक फिल्म और इसमें एक बार फिर यामिनी दास उनकी माँ के किरदार में नज़र आयी हैं। यामिनी के किरदार का स्क्रीन टाइम कम हैं मगर जितनी देर के लिए भी वो सामने आती अपनी सादगी से प्रभावित कर जाती हैं। फिल्म में जमील खान, विनीत कुमार और गौहर खान जैसे अदाकार भी मौजूद हैं जिन्होंने स्क्रिप्ट की मांग के अनुसार अपना काम सफल तरीके से किया हैं। इस फिल्म की कहानी पुरानी सी लगती हैं मगर इसकी कास्टिंग ने इसको एक नयापन दिया हैं। कई चेहरे ऐसे हैं जो कहानी को मनोरजंक बनाए रखते हैं।
फिल्म की अच्छी व ख़राब बाते
फिल्म की सबसे अच्छी बात हैं जातिवाद-पितृसत्ता जैसे भारी मुद्दों को अपने साथ लेकर चलते हुए भी बोरिंग ना होन। इस फिल्म की कहानी खींची हुई बिलकुल भी नहीं लगती हालांकि शुरुआत में थोड़ी जल्दबाज़ी में नज़र आती है। कॉलेज लाइफ से जॉब लाइफ और फिर शादी की तरफ काफी तेज़ी से भागती हैं। इस फिल्म में शादी मुख्य बिंदु हैं तो ज़ाहिर सी बात हैं गाने तो लाज़मी हैं मगर कुछ जगह पर गाने थोड़े अटपटे लगते हैं। जैसे एक जगह पर इस फिल्म के मुख्य किरदार अदिति और संजय लड़ रहे होते हैं और तभी गाना भी चल रहा होता है। गाना उतना तेज़ नहीं होता मगर थोड़ा अटपटा ज़रूर लगता हैं, उस समय ऐसा लगा कि मानो संवादों में गहराई नहीं थी तो गानो की धुन से उसे छुपाया जा रहा हो। दिव्यांशु सिंह का निर्देशन काफी सरल हैं, कुछ नया देखने को नहीं मिलेगा मगर कुछ बुरा भी नहीं लगता। विक्रांत का किरदार संजय जिस तरीके से लिखा गया हैं उसके लिए फिल्म के लेखक मनोज कलवानी को साधुवाद।
ओवरऑल 14 फेरे का लेखा झोखा
यह फिल्म इस सप्ताहांत परिवार के साथ देखने के लिए एक अच्छी पसंद हो सकती हैं। अगर आप विक्रांत मैसी के प्रशंसक हैं तो यह फिल्म ज़रूर देखे। बाकी ऐसा कुछ ज्यादा ख़ास नहीं हैं जो इस फिल्म को सभी के लिए मस्ट वॉच बनाये। हाँ लेकिन लोगो को मनोरंजन के साथ-साथ सीख देने की एक अच्छी कोशिश हैं 14 फेरे।
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