वास्को-डी-गामा भारत में सबसे पहले यूरोपीय नाविक थे जिन्होंने 1498 में मालाबार के तट पर पहुँचकर भारत आने का रास्ता खोजा।
15वीं सदी के अंत में, भारत के सामुद्रिक रास्तों की खोज ने यूरोपीय देशों को एक नए माध्यम के रूप में भारतीय माल की आपूर्ति का संधान किया। इस समय, यूरोपीय लोग व्यापार, खोज, और आकलन के लिए समर्थ हो रहे थे और उन्हें भारतीय उपमहाद्वीप की ऊपरी सीमा को छूने का इच्छा था।
वास्को-डी-गामा का पहला पहुँचना: साम्राज्यवाद की शुरुआत
पुर्तगाली नाविक वास्को-डी-गामा ने 1497-1499 में आयोजित की गई पहली खोज के दौरान केप ऑफ गुड होप को तर्कसंगत किया और सत्रहवीं सदी में एक नए सामुद्रिक रास्ते की खोज की। 1498 में, वह मालाबार के तट पर पहुँचे और इससे पहले जो कोई यूरोपीय नाविक नहीं पहुँचा था। इससे भारत में पुर्तगाली साम्राज्यवाद का आरंभ हुआ, जो बाद में अन्य यूरोपीय देशों द्वारा भी अनुसरण किया गया।
पुर्तगाली और उनका व्यापार: भारत के साथ सामुद्रिक रूप से जुड़ना
पुर्तगाली ने भारत के सामुद्रिक क्षेत्रों में व्यापार के माध्यम से अपनी स्थिति को सुदृढ़ किया। वे गोवा को अपना प्रमुख व्यापारिक और प्रशासनिक केंद्र बना लिया जहां से वे भारतीय माल को यूरोप और अन्य स्थानों तक पहुँचा सकते थे। उन्होंने महत्वपूर्ण तटीय कस्बों को अपने अधीन किया, जिससे उनका स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय व्यापार मजबूत हुआ।
साम्राज्यवादी संघर्ष: पुर्तगाली और अन्य यूरोपीय देशों के बीच
सप्तदशी के चारों ओर, साम्राज्यवादी संघर्ष उत्पन्न हुआ, जिसमें पुर्तगाली और अन्य यूरोपीय देश भारत के विभिन्न हिस्सों पर अधिकार करने की कोशिशें कर रहे थे। गोवा, मद्रास, बंगाल, और अन्य क्षेत्रों पर उनका आक्रमण हुआ और इससे यह सिद्ध होता है कि उनका इच्छा न केवल व्यापारिक बल्कि साम्राज्यवादी भी था।
अंत: भारतीय प्रदेशों से पुर्तगाली का अधिकार कमजोर होता जा रहा था
दीर्घकालिक संघर्षों के बाद, स्थानीय शासकों के साथ नए यूरोपीय संस्करणों के साथ संघर्ष के कारण, पुर्तगाली का भारतीय प्रदेशों पर अधिकार कमजोर होता जा रहा था। उसके परिणामस्वरूप, उन्हें भारतीय साम्राज्य को छोड़ना पड़ा और उनका सम्पर्क भारत से हाथ धोना पड़ा। इस समय का इतिहास दर्शाता है कि यूरोपीय देशों का भारतीय साम्राज्य में प्रवेश और व्यापार की इच्छा ने भारतीय इतिहास को नए मोड़ पर ले जाया।
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