गाँधी का तप, अम्बेडकर का त्याग, सुभाष की वीरता, लक्ष्मीबाई के ओज और हजारों स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान ने हमें 15 अगस्त 1947 का दिन दिया, आजाद हवा में सांस लेने का अधिकार दिया। इसके लिए उन सभी महान आत्माओं का हमें शुक्रिया अदा करना चाहिए।
अपने ही घर में गुलाम बनकर रहना क्या होता है ये शायद हमने और आपने कभी महसूस नहीं किया होगा! हमारे संसाधनों पर हमारा ही हक़ न होना कैसा दुःख देता है ये शायद हम नहीं समझ सकते। क्योंकि आज के ठीक 74 साल पहले हमने भारत के इतिहास का सबसे सुनहरा अध्याय लिख दिया था — जब हमने सैंकड़ों वर्षों की ग़ुलामी के बाद स्वतंत्रता की सरगर्मी को पहली दफ़ा महसूस किया था।
गाँधी का तप, अम्बेडकर का त्याग, सुभाष की वीरता, लक्ष्मीबाई के ओज और हजारों स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान ने हमें 15 अगस्त 1947 का दिन दिया, आजाद हवा में सांस लेने का अधिकार दिया। इसके लिए उन सभी महान आत्माओं का हमें शुक्रिया अदा करना चाहिए। धन्य हैं हम उस राम-नाम की लाठी का जिसकी मार से अंग्रेजी सेना के गोले-बारूद नतमस्तक हो गए। धन्य हैं हम उस जवानी और जुनून के जिसने दुनिया के सबसे बड़े साम्राज्य को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। धन्य हैं हम उन सत्याग्रही माताओं का जिनकी ज़िद्द ने हमें ग़ुलामी की जंजीर से मुक्त कराया।
आज हम स्वतंत्र हैं, आजाद भारत के स्वाभिमानी नागरिक हैं। हम खुद अपनी सरकार चुनते हैं, अपनी तकदीर और तदवीर खुद बनाते हैं। देश हमारा, लोग हमारे, शासन हमारा, हमारे संसाधनों पर हक़ भी हमारा है।
विदेशी शासन से आज़ादी तो हमें मिल गई है लेकिन क्या आज के 7 दशक पहले हमने जिस भारत की कल्पना की थी उसको पूरा करने में सफल रहे हैं? स्पष्टतः नहीं। किसी भी देश और समाज को पूर्ण रूप से दोषरहित होने में सदियों का समय लगता है। हम भी फिलहाल उसी मार्ग पर प्रशस्त हैं।
जिस इंग्लैण्ड ने कभी हम पर राज किया था उसकी अर्थव्यवस्था को हम पीछे छोड़ चुके हैं। 1950 में हमारी अर्थव्यवस्था $30.6 बिलियन की थी जबकि आज हम $3 ट्रिलियन तक पहुंच चुके हैं। साक्षरता दर के क्षेत्र में हम 12% से 75% तक पहुंच चुके हैं। 1947 में हम लगभग 50 मिलियन टन खाद्यान्न का उत्पादन करते थे जो कि अब बढ़कर इसका पांच गुना हो चुका है। कई अन्य सामाजिक और आर्थिक मापदंडों पर हम कोसो आगे बढ़ चुके हैं। और ये सब हमने आजाद होकर किया है। हमारी तरक्की की हर एक गाथा अंग्रेजी हुकूमत के गाल पर तमाचा है जिसने सोने की चिड़िया को दुनिया का सबसे गरीब मुल्क बना कर छोड़ा था।
हालाँकि उन्नति की इस राह पर हम कई दफ़ा असफल भी रहे हैं। एक राष्ट्र के तौर पर एकजुट होने में हम आज भी काफी पीछे हैं। जाति, धर्म, रंग, भाषा, क्षेत्र, आदि के आधार पर हम आज भी बंटे हुए हैं। शायद यही वजह है कि हमारी तरक्की की गति में सेंध लग गई है। डेमोक्रेसी इंडेक्स में दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र पिछले कई वर्षों से फिसलते हुए इस वर्ष 53वें पायदान पहुंच चुका है।
बापू ने जिस राम-राज्य की कल्पना की थी उसके राम रावण को मारने से पहले उनको प्रणाम करते हैं। आज हम उस मर्यादा-पुरुषोत्तम के नाम पर क्या कर रहे हैं ये बताने की जरूरत नहीं। हमारे देश में देवी दुर्गा, सरस्वती, और लक्ष्मी को पूजा जाता है जो कि शक्ति, विद्या, और धन देने वाली हैं। देश में छोड़ दीजिये अपने घर में झाँककर देखिये और दिल पे हाथ रखकर कहिये कि क्या शक्ति, विद्या, और धन अर्जित करने की आज़ादी हमारे माताओं, बहनों और बीवियों के पास है? अगर नहीं तो हममे सुधार की गुंजाइश है। सामाजिक एकजुटता और समरूपता ही सही मायनों में पूर्ण स्वतंत्रता का मतलब है।
मैं ये सब इसलिए कह रहा हूँ ताकि हम आजाद होने का सम्पूर्ण मतलब समझ सके। एक नागरिक के तौर पर हमारा कर्तव्य है कि हम हमारे देश से सभी दुर्विचारों को दूर रखें, देश की तरक्की में अपना योगदान दें, अपने देशवासियों के साथ कंधे से कन्धा मिलकर भारत को विश्वगुरु बनायें। और ये सब तभी संभव है जब हम हमारे अंदर की खामियों को जानेंगे और स्वीकार करेंगे। महान राष्ट्र भारत के सभी नागरिकों को स्वतंत्रता दिवस की ढेरों बधाइयाँ। खूब खुश रहें, अपने परिवार और मित्रों के साथ जलेबियाँ खाएं और अपने आसपास को राष्ट्रहित में स्वच्छ रहे। धन्यवाद!
# अगर आपके पास भी कोई कहानियां या ब्लॉग है तो हमें भेज सकते हैं। हम उसे ‘गंगा टाइम्स’ पर प्रकाशित करेंगे।
Keep visiting The Ganga Times for Bihar News, India News, and World News. Follow us on Facebook, Twitter, and Instagram for regular updates.