संसद में अविश्वास प्रस्ताव (No-confidence motion) का सामना करने की घटना, जिसमें कांग्रेस द्वारा सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया, देश की राजनीति में बड़ी चर्चा का विषय बना है। यह घटना राजनीतिक माहौल को गरमा गरम कर दिया है और सरकार और विपक्ष के बीच तनाव बढ़ गया है।
मामूली संख्या वाले वोटों की आवश्यकता के कारण, विपक्ष को कम से कम 50 सांसदों का समर्थन जुटाना था ताकि अविश्वास प्रस्ताव को पेश किया जा सके। कांग्रेस ने गौरव गोगोई की मुख्यतः मेज़बानी करते हुए अपने सभी सांसदों के वोटों के साथ अविश्वास प्रस्ताव को पेश किया। अविश्वास प्रस्ताव के द्वारा सरकार के खिलाफ वोट देने की प्रक्रिया आज से शुरू हो गई थी।
मणिपुर हिंसा के विषय में संसद के दोनों सदनों में विपक्ष के बीच तनाव बना हुआ है। मणिपुर के मोरेह में विभिन्न कारणों से हिंसा उत्पन्न हुई थी जिसमें घरों में आग लगने और सुरक्षा बलों की बसों को निशाना बनाने की घटनाएं शामिल थीं। विपक्ष इस मुद्दे को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बयान देने की मांग कर रहा है जिसे वह सदन में बयान देंगे, हालांकि केंद्र सरकार इस मुद्दे पर विपक्ष के साथ बहस करने के लिए तैयार है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी नहीं, गृहमंत्री अमित शाह विपक्षी दलों से मुद्दे के बारे में बात करेंगे।
विपक्ष ने सरकार को अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से दबाव डालने का प्रयास किया है, जो राजनीतिक दलों के बीच टकराव के रूप में प्रतिबिम्बित हो रहा है। इसके साथ ही, विपक्ष का मांगना है कि वे प्रधानमंत्री मोदी या गृहमंत्री अमित शाह से इस मुद्दे पर बात करें, और राज्यसभा से सस्पेंड हुए विपक्षी सांसद संजय सिंह समेत कुछ विपक्षी दल संसद परिसर में ही विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।
संसद में अविश्वास प्रस्ताव (No-confidence motion) के दौरान यह भी जानकारी दी गई कि प्रस्ताव की पूरी प्रक्रिया को पूरा करने के बाद सरकार को सदन पटल पर बहुमत साबित करना होगा, जो अधिकांश वोटों की आवश्यकता को पूरा करने के लिए जरूरी है। यह अविश्वास प्रस्ताव लागू होने के बाद सरकार को अगर सदन पटल पर बहुमत प्राप्त नहीं होता है, तो सरकार को आधिकारिक रूप से इस्तीफा देना होगा और नए चुनाव का रास्ता खुल जाएगा।
पिछले कुछ दशकों में भी कई बार सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किए गए हैं, जिनमें से कुछ को मंजूरी भी मिली थी और कुछ का गिरा हुआ था। 1963 में नेहरू सरकार, 1990 में वीपी सिंग, 1997 में एचडी देवेगौड़ा और 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के खिलाफ भी अविश्वास प्रस्ताव लागू किए गए थे। इनमें से कुछ प्रस्ताव गिर गए थे और कुछ मंजूरी पा लेते थे।
विपक्ष द्वारा अविश्वास प्रस्ताव का पेश करना सरकार के प्रति उनके समर्थकों की रूचि को प्रकट करता है और सरकार द्वारा इसे नगण्य करने के लिए प्रयास किया जाएगा। इस घटना के बाद, राजनीतिक माहौल में आनेवाले दिनों में देखा जा सकता है कि कैसे सरकार और विपक्ष के बीच और तनाव बढ़ जाएगा और कैसे इसका प्रभाव देश की राजनीति को प्रभावित करेगा।
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