क्या कोरोनावायरस वास्तव में एक महामारी है या हम मनुष्यों द्वारा की गई एक भयानक भूल का परिणाम? कहीं प्रकृति मइया हमें हमारी गलतियों का सबक तो नहीं सीखा रही?
प्रकृति की गोद में अपनी दुनिया सजाने वाला मानव देखते देखते अपनी आँखों में लालच का काजल लगाकर इस गोद को कलंकित कर बैठा। ये लालच इंसानी मष्तिष्क में घुसा एक ऐसा वायरस है जो किसी भी अन्य वायरसों से अधिक खतरनाक मालुम पड़ता है। इसके आगे मनुष्य अपना विवेक खो बैठता है और धन सृजन करने की पराकाष्ठा को पार कर जाता है।
इंसानो में इंसानी मूल्य कहे जाने वाले तत्वों का बहुत तेजी से नाश हुआ है जिसके कारण आने वाले दिनों में भी अनगिनत आपदाओं का सामना करना पड़ सकता है।
हाल के दिनों में ये पाया गया है की मानव प्रजाति अपना मुँह छिपाये फिर रहा है और सब एक एक बन्दे को पकड़कर बंद कर रहे हैं। बाहर आजादी से घूमने पर रोक लगा दी गई है, प्रकृति का गला दबाकर हासिल किये गए संसाधन बंद पड़े हैं। आज की परिस्थिति को देख ऐसा लगता है मानो प्रकृति ने मानवों को सबक सिखाने की ठान ली है। उनपर एक कहावत बहुत सटीक बैठ रहा है आजकल –
‘करता था सो क्यों किया, अब कर क्यों पछिताये
जो बोये पेड़ बबूल का तो आप कहाँ से पाए!’
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