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माखनलाल चतुर्वेदी का जीवन परिचय: Makhanlal Chaturvedi in Hindi

Makhanlal Chaturvedi in Hindi: is one of the finest faces in the field of Hindi literature and journalism. The Chhayavaad poet was awarded the first Sahitya Akademi Award in Hindi for his work Him Taringini in 1955. Read Makhanlal Chaturvedi ka jivan parichay in Hindi. The piece covers Makhanlal Chaturvedi in Hindi poems and many rachnaye.

Makhanlal Chaturvedi ka Jivan Parichay in Hindi
Makhanlal Chaturvedi ka Jivan Parichay in Hindi

Makhanlal Chaturvedi in Hindi: एक भारतीय आत्मा के रूप में विख्यात आधुनिक हिंदी के राष्ट्रीय कवि, हिंदी राष्ट्रीय पत्रकारिता के भीष्म पितामह एवं हिंदी गद्य के निर्माताओं में गद्य भाषा और गद्य शैली के अपने खास तेवर के लिए अलग से अपनी पहचान ज्ञापित करने वाले पंडित माखन लाल चतुर्वेदी (Pandit Makhanlal Chaturvedi) जी का जन्म मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के बावई गाँव में 4 अप्रैल 1889 को हुआ था। इनके पिता का नाम नंदलाल चतुर्वेदी (Nandlal Chaturvedi) था, वे अपने ग्राम सभा में स्थित प्राथमिक विद्यालय में अध्यापन का कार्य करते थे। इनकी माता का नाम श्रीमती सुंदरी देवी था।

बचपन से ही, दुनिया और खुद से भी लड़ते हुए माखनलाल जी ने जो यात्रा तय की थी, वह सबसे अलग मगर सबके साथ तय की थी। यह साथ होना और अलग होना ऐसे बारीक लकीर से बंटा था जिसका बयान सिर्फ कविता से ही संभव होता है। माखनलाल जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव से ही प्राप्त की। जिसके बाद उन्होंने घर पर ही संस्कृत, बंगला, गुजराती और अंग्रेजी भाषा का अध्ययन किया। लोग कहते हैं कि मंदिर के पास ही एक बड़े शिलाखंड पर बैठे बालक माखनलाल, संस्कृत का अध्ययन करते और अपने प्रिय हिंदी ग्रंथ लल्लूलाल का प्रेम सागर पढ़ते थे।

Makhanlal Chaturvedi ka Jivan Parichay me Sahitya ki Bhumika

Makhanlal Chaturvedi ka Jivan Parichay Ke Baare me jaaniye is video ke madhyam se

एक महान कवि, संयत विचारक, साहित्यकार और राष्ट्रनेता के रूप में सेवा करने वाले माखन दादा का किशोरावस्था से ही स्वावलंबन, स्वाधीनता, परिश्रम, स्वाभिमान, परोपकार आदि नैतिक मूल्यों से साक्षात्कार हो गया था। उनके किशोर हृदय से विस्मृत उद्गार इस बात की साक्षी है –

जब लियो फकीरी बाना, मांग क्यों खाना टुकड़े हराम के।
तू फांके पर हरदम रहना, भूख – प्यास, सुख – दुख सब सहना,
प्राण गए तो कभी न कहना, हम गुलाम है दाम के।
तू रियाज ऐसा कर भाई, नाम खुदा है अटल कमाई,
बचो बुरे से, करो भलाई, बनकर बंदे राम के।

यह विराट कवि रूप उनके जीवन के सभी पहलुओं पर आजीवन हावी रहा, चाहे साहित्यिक क्षेत्र हो अथवा क्रांतिकारी क्रियाकलाप। इसी कवि रूप ने दादा की मानवतावादी विचारधारा और आस्था की रक्षा भी की।
माधवराव सप्रे के Hindi Kesari ने सन् 1908 में राष्ट्रीय आंदोलन और बहिष्कार विषय पर निबंध प्रथम चुना गया। सप्रे जी को माखनलाल चतुर्वेदी की लेखनी में अपार संभावनाओं से युक्त पत्रकार के दर्शन हुए। उन्होंने ने माखन लाल जी को इस दिशा में प्रवृत्त होने के लिए प्रेरित किया। यद्यपि अपने युग की हिंदी संसार को महान हस्तियों का प्रथम सम्मिलन 1911 में हो पाया, तथापि उनके बीच गुरु शिष्य का नया हो गया था।

Swatantrata Sangram me Makhanlal Chaturvedi ka Yogdan

Makhanlal Chaturvedi ka Jivan Parichay me Pushp ki Abhilasha ka aham yogdaan hai
Makhanlal Chaturvedi ka Jivan Parichay me Pushp ki Abhilasha ka aham yogdaan hai (Courtesy: ihindi.com)

1913 में खंडवा के हिंदी सेवी कालूराम गंगरांडे ने मासिक पत्रिका प्रभा का प्रकाशन आरंभ किया, जिसके संपादन का दायित्व माखनलाल जी को सौंपा गया। 1913 में उन्होंने अध्यापक की नौकरी छोड़ दी और पूरी तरह से पत्रकारिता, साहित्य और राष्ट्रीय आंदोलन के लिए समर्पित हो गए। इसी वर्ष कानपुर से गणेश शंकर विद्यार्थी का साप्ताहिक प्रताप का संपादन प्रकाशन आरंभ किया। 1916 के लखनऊ कांग्रेस अधिवेशन के दौरान मैथिली शरण गुप्त और महात्मा गांधी से मुलाकात की। बालकृष्ण शर्मा ने थी अपने काव्यादर्श एक भारतीय आत्मा को पहचाना।

स्वतंत्रता संग्राम में उनकी तेजस्वी ओजस्वी भागीदारी के अलावा माखनलाल जी को जानने को हम तीन माध्यम से जान सकते है। महात्मा गांधी द्वारा आहूत सन् 1920 के असहयोग आन्दोलन में महाकौशल में पहली गिरफ्तारी देने वाले माखनलाल ही थे। इसी वर्ष 17 जुलाई 1920 को इनके नेतृत्व से “कर्मवीर” का संपादन शुरू हुआ जो बड़ी निर्भीकता से देशी रियासतों का कच्चा चिट्ठा खोल रहा था। कर्मवीर के अग्रलेख भी अंगारे बरसाने लगे। कुछ राजाओं ने पत्र को सहयोग देना बंद कर दिया था। इस असहयोग जन्य अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, बड़े साहस के साथ सभी विषमताओं को सहा किंतु अपनी अस्मिता का सौदा कभी नहीं किया।

माखन लाल चतुर्वेदी जी की आत्मा में अद्भुत रसायन था, जो विभिन्नताओं को अपनी अंतक्रिया से इस तरह एकसार कर देता था. माखनलाल चतुर्वेदी बहुमुखी आराधनाशील थे। हिंदी के ललित निबंधों के वे अग्रपुरुष है। पंडित माखन लाल चतुर्वेदी जी को देश भर में लोग प्यार से “दादा” कहकर पुकारा करते थे। उनका यह नाम महज एक संबोधन नहीं वरन् इसमें उनका सम्पूर्ण व्यक्तित्व समाया है। वे हिंदी के कवि, कहानीकार, निबंधकार और पत्रकार रहे लेकिन इन सबसे पूर्व एक सरल हृदय मनुष्य थे। उनका घर हमेशा सबके लिए खुला रहता था।

Makhanlal Chaturvedi in Hindi Literature

Khud ko pahchanana aur swavalamban banana hi Makhanlal Chaturvedi ka Jivan Parichay hai
Khud ko pahchanana aur swavalamban banana hi Makhanlal Chaturvedi ka Jivan Parichay hai (Courtesy: hindisahityadarpan)

दादा के वक्तृत्व शैली का जिक्र करते हुए एक बार रामधारी सिंह दिनकर ने कहा था जिन लोगों ने माखनलाल जी का भाषण नहीं सुना वे हमारे या आपके कहने से यह नहीं समझ पायेंगे कि हिंदी में वक्तव्य की कैसी अदभुत शक्ति है। हिंदी के सदा मजाक उड़ाने वाले अंग्रेजी के प्रबल समर्थक लार्ड सच्चिदानंद सिन्हा ने जब पटना में एक बार दादा का भाषण सुना तो उन्होंने उनके सम्मान में एक भोज दिया था और उसमें कहा था कि ‘माखनलाल जी जो बोलते है, यदि वही हिंदी है तो मैं हिंदी का प्रबल समर्थक हूं। एक कुशल वक्ता के रूप में माखन जी ने जो अपनी अमिट छाप छोड़ी वो अविस्मरणीय है। (Makhanlal Chaturvedi in Hindi)

जब वे बोलते थे तो लोग शांत हो जाते थे। उनके वक्तव्य कला पर महात्मा गांधी भी मुग्ध थे। महात्मा गांधी जी ने एक बार कहा था कि *हम सब लोग तो बात करते है, बोलना तो माखन लाल जी ही जानते हैं। वे जब भाषण देते थे तो मानो ऐसा लगता मानो उपमाओं और अलंकारों की झड़ी लग गई और जैसे नदी अपने प्रवाह के साथ बड़े बड़े पाषाण खंडों को बहा ले जाने की क्षमता रखती है वैसे ही उनके भाषण में शब्दों की शिलाएं पिघलने लगती। माखनलाल की स्वातंत्र्य – संघर्ष की पत्रकारिता उस युग को सांस्कृतिक साहित्यिक शैक्षणिक और रूढ़ी – द्रोही अप्रतिहत चेतना की संवाहिका थी।

Makhanlal Chaturvedi in Hindi Patrakarita: Prabha, Karmaveer aur Pratap

उनके द्वारा संपादित मासिक पत्रिका ‘प्रभा ‘ दो वर्ष ही निकल सकी थी पर उसे ” मध्यप्रदेश की सरस्वती ” कहा जाने लगा था। ‘प्रभा’ , ‘कर्मवीर’ और ‘प्रताप’ आदि पत्रों का संपादन करते हुए हमारे कवि सेनानी ने स्वाधीनता की चेतना को लाखों,करोड़ों देशवासियों में जागृत करने में अद्भुत सफलता प्राप्त की। कर्मवीर गांधी जी के कर्मवीरत्व का सजीव स्मारक था। गांधीजी के व्यक्तित्व और उनकी कर्मण्य चेतना ने, उनकी अहिंसात्मक विचारधारा में और अफ्रीका में इसी विचारधारा के अंतर्गत प्राप्त सफलताओं ने माखनलाल जी को अभिभूत कर दिया था। कर्मवीर का अत्यधिक मनोयोगपूर्ण संपादन, निर्भीकता और उदात्त समर्पण की अंतः भूमि पर राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय को जोड़ सकने वाली मनीषा से संपन्न था।

Makhanlal Chaturvedi ka Jivan Parichay aur unki patrakarita ko log kaafi sarahate hain
Makhanlal Chaturvedi ka Jivan Parichay aur unki patrakarita ko log kaafi sarahate hain

स्वाधीनता के अतरिक्त असहकारिता, असहयोग, प्रजातंत्र, खिलाफत, रौलट एक्ट, पंचायत राज , देशी राज्य, हिंदू मुस्लिम भेद नीति, क्रांतिकारी आंदोलन और गरम और नरम दल जैसे अनेक धधकते हुए प्रश्नों और विषयों पर कर्मवीर का अनुचिंतन समस्त भारत को उद्वेलित करता था। माखन लाल जी कर्मवीर के माध्यम से असहयोग आन्दोलन में सक्रिय रूप से दाखिल हो गए। परिणामतः माखनलाल जी ब्रिटिश शासन की आंखों में किरकिरी बन गए। वह उन्हें गिरफ्तार करने के आधार की तलाश रहने लगी। उनकी गिरफ्तारी की निंदा करते हुए महात्मा गांधी ने यंग इंडिया में और विद्यार्थी जी ने प्रताप में तथा देशभर के अखबारों ने कठोर संपादकीय टिप्पणियां लिखी थी।

आज जबकि आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक मूल्यों के अवमूल्यन का दौर हैबौर स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े सभी मुद्दे अर्थवत्ता खोते जा रहे है, राष्ट्रीयता राष्ट्रभाषा और स्वदेशी की बात करने वाले कट्टरपंथी और वैश्विकता के विरोधी घोषित हो चुके हैं, माखन लाल जैसे योद्धा का संपूर्ण जीवन और सम्पूर्ण कृतित्व एक प्रकाश स्तंभ की तरह है। (Makhanlal Chaturvedi ka Jivan Parichay Rashtra-bhakti se paripurn hai)

उनके संपूर्ण जीवन पर अगर नज़र डाली जाय तो हम यह कह सकते हैं कि उन्होंने किसी एक क्षेत्र में ही काम नहीं किया अपने संपूर्ण जीवन को राष्ट्र के नाम समर्पित कर दिया.।” माखन लाल जी ने अपने से भी ज्यादा हमेशा देश को चाहा है, प्राणों की चिंता तो उन्होंने कभी की ही नहीं।

माखन लाल चतुर्वेदी जी सरल भाषा और ओजपुर्ण भावनाओं के अनूठे रचनाकार थे। राष्ट्रीयता माखन लाल चतुर्वेदी जी के काव्य का कलेवर है तथा रहस्यात्मक प्रेम उसकी आत्मा था। 30 जनवरी 1968 को साहित्य जगत का यह सितारा संसार से सदा के लिए ओझल हो गया। अब तो उनकी स्मृति शेष है। दादा माखन लाल जी जीवन भर पतझड़ झेलते रहे, पर दूसरो के लिए बसंत की कामना की। वे एक ऐसे क्रांति दृष्टा थे, जिन्होंने जीवन के हर क्षेत्र में संघर्ष किया।

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