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Muharram 2022 Date जानिए आखिर क्यों मनाया जाता है मुहर्रम?

मुस्लिम समुदाय द्वारा मनाया जाने वाला एक प्रमुख पर्व मुहर्रम इस वर्ष यानी 2022 में 9 अगस्त को मनाया जाएगा। Muharram 2022 Date is August 7.

Muharram 2022 date

भारत में लगभग 142 करोड़ आबादी है। जिसमें लगभग 20 करोड़ लोग इस्लाम धर्म को मानते है। हमे ये मालूम है की मुहर्रम (Muharram) पर्व को हर साल मुस्लिम समाज द्वारा खूब धूम धाम से मनाया जाता है, शिया और सुन्नी दोनो संप्रदाय के लोग मुहर्रम की दसवीं तारीख को ढोल, ताजिया और अखाड़ा प्रदर्शन करते है। मगर क्या आपको ये मालूम है की आखिर मुहर्रम क्यों मनाया जाता है? मुहर्रम मानने के पीछे की क्या कहानी है? और आशूरा किसे कहते है? चलिए आज जानते है।

मुहर्रम 2022 कब है? Muharram 2022 Date

Muharram 2022 Date is August 7
Muharram 2022 Date is August 7

इस्लामिक कैलेंडर (हिजरी कैलेंडर), में मुहर्रम साल के सबसे पहले महीने का नाम है। इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से मुहर्रम के पहली तारीख नए साल का पहला दिन होता है। जो इस बार (Muharram 2022) 31 जुलाई को होगा। आपको बता दें कि तारीख चांद को देख कर ही तय किया जाता है अगर 30 जुलाई को चांद दिख गया को इस बार मुहर्रम महीने का शुरुआत 1 जुलाई को होगा और आशूरा यानी मुहर्रम की दसवीं तारीख 9 जुलाई को पड़ेगा।

मुहर्रम महीने की पहली तारीख से लेकर दसवीं तारीख तक बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। आशूरा यानी मुहराम के दसवीं तारीख को केवल भारत में ही नहीं बल्कि विश्व के सभी देशों में मुस्लिम समुदाय के लोग मुहर्रम का त्योहार मनाते है। हालांकि तारीख में एक दो दिन का फर्क हो जाता है।

मुहर्रम क्यों मनाया जाता है? Muharram kyu manater hai? in Hindi

Muharram 2022 Date is August 7

सबसे पहले हमें ये पता होना चाहिए की मुहर्रम, खुशियों का त्योहार नहीं है। मुहर्रम (Muharram) इमाम हुसैन (r.a) की शहादत की याद में मनाया जाता है। इस्लामिक इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण और सबसे बड़ी जंग जो करबला में हुआ था, उस जंग में पैगंबर मुहम्मद (s.a.w) के नाती इमाम हुसैन (r.a) की शहादत हो गई थी। इमाम हुसैन(r.a) धर्म और इंसानियत के लिए एक जुल्मी बादशाह के खिलाफ लड़ते रहे और अंत में शहीद हो गए। जिस दिन उनकी शहादत हुई वो मुहर्रम की दसवीं तारीख थी।

मुहर्रम मनाए जाने के पीछे की कहानी (Muharram Story in Hindi)

ये तब की बात है जब इस्लामिक समाज में खलीफा का राज होता था। जब पैगंबर मोहम्मद (s.a.w) इस दुनिया के चले गए थे तब आपसी समझौता और चुनाव करके खलीफा के लिए 4 लोगों को चुना गया था। 

मगर उसके 50 सालों के बाद सीरिया में रहने वाला यजीद नाम का एक गवर्नर खुद को इस्लाम का खलीफा बताने लगा। वो खुद को मुसलमानों का नेता बताता था मगर वह एक खलीफा की तरह नही बल्कि राजा की तरह काम करता था। यजीद लोगों के बीच अपना खौफ पैदा करके उन्हें अपना गुलाम बनाना चाहता था। वो जो कुछ करता था वह इस्लाम धर्म के खिलाफ था इसलिए अरब में रहने वाले पैगंबर मोहम्मद (s.a.w) के नाती और हजरत अली (r.a) के बेटे, इमाम हुसैन (r.a) और उनके भाइयों को जब यजीद के बारे में पता चला तो उन्होंने यजीद को खलीफा मानने से इंकार कर दिया।

यजीद ने अपने सिपाहियों से इमाम हुसैन को खबर भेजवाया की अगर वो उसे खलीफा नही मानेंगे तो उनका सर काट दिया जाएगा। मगर इमाम हुसैन ने एक भ्रष्ट और ज़ुल्म करने वाले बादशाह को स्वीकार नहीं किया और यजीद के खिलाफ खड़े रहे। यजीद को ये बात बर्दाश्त नहीं हुई और उसने अपनी सेना को इमाम हुसैन (r.a) का सर काट कर लाने को हुकुम दे दिया। उस समय हिजरी के 60वां साल साल का अंतिम महीना चल रहा था। इमाम हुसैन हज ए उमरा करके इराक लौट गए थे।

61 हिजरी को मुहर्रम यानी नए साल के पहले महीने के दो तारीख को इमाम हुसैन अपने परिवार के साथ करबला में थे और करबला के मैदान में यजीद के सिपाही जंग के लिए खड़े थे। यजीद के आदमियों ने इमाम हुसैन को मानने वाले लोगों के लिए पानी बंद कर दिया था। इमाम हुसैन के साथ कुल 72 जंगजू थे और यजीद के सैंकड़ों हजारों सिपाही थे।  9 दिन तक जंग चलते रही और इमाम हुसैन को मानने वाले सभी लोग जंग की मैदान में शहीद हो गए।

अब सिर्फ इमाम हुसैन अकेले लड़ने के लिए बचे थे। मुहर्रम ने 9 तारीख को इमाम हुसैन के 6 महीने के बेटे को पानी की जोर से तड़प उठी थी तभी वो अपने बच्चे को गोद में लेकर यजीद की सिपाहियों से पानी मांगने के लिए मैदान में चले गए। मगर किसी ने भी उन्हें पानी का एक कतरा तक नहीं दिया और उनके बेटे ने उनकी गोद में ही प्यास के कारण दम तोड़ दी। 

अगले दिन मुहर्रम की दसवीं तारीख को जब इमाम हुसैन नमाज़ पढ़ रहे थे और अल्लाह के आगे सजदा कर रहे थे तब यजीद के सिपाही ने उनका सर काट दिया और इमाम हुसैन शहीद हो गए। जिस दिन इमाम हुसैन की वफात यानी शहादत हुई उस दिन को आशूरा कहा जाता है।

यही कारण है की तब से लेकर आज तक हर एक मुसलमान मुहर्रम (Muharram) के दसवीं तारीख को इमाम हुसैन की शहादत और बहादुरी को याद करता है। जिसे पूरी दुनिया त्योहार के रूप में जानती है मगर असल में ये त्योहार नहीं बल्कि मुसलमानों के लिए शोक का दिन होता है।

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