Friday, November 22
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पिंड दान गया (Pind Daan Gaya) हिंदी में, लागत, प्रक्रिया और महत्व

हिंदू धर्म में पितृपक्ष  (Pind Daan Gaya) के दौरान सभी अपने पूर्वजों की मृत्यु तिथि पर श्राद्ध करके उनके मोक्ष की कामना करते हैं। मान्यता है कि यमराज इस दौरान पितरों की आत्मा को उनके वंशज के पास जाने के लिए मुक्त कर देते हैं, ताकि पितृ अपने वंशज के बीच रहकर अन्न जल स्वीकार कर सकें।

Pind Daan Gaya will begin on Sunday, 10 September 2022, and ends on Sunday, 25 September 2022.
Pind Daan Gaya will begin on Sunday, 10 September 2022, and ends on Sunday, 25 September 2022.

भाद्रपद की पूर्णिमा आते ही पितरो का आगमन हो जाता है यानि भादो माह के पूर्णिमा से शुरू हुए कृष्ण पक्ष के पुरे 16 दिन को पितृपक्ष कहा जाता है।  पितृपक्ष के दौरान वंशज अपने पितृ को पिंडदान और तर्पण करते हैं। माना जाता है कि इस दौरान किया गया पिंडदान सीधे उनके पूर्वजों तक जाता है, इससे उनपर सदा उनके पितरों का आशीर्वाद बना रहता है और उनकी आत्मा तृप्त होती है। हिंदी पंचांग के अनुसार इस बार पितृपक्ष का आरम्भ 10 सितंबर से हो गया है और पितृ विसर्जन 25 सितंबर की तिथि को पड़ रहा है।

गया में पिंडदान क्यों? जानिए वजह (Why Pind Daan in Gaya? Know the reason)

Vishnupad Mandir Gaya
Vishnupad Mandir Gaya

कई लोग श्राद्ध और तर्पण को अपने घर पर ही करते हैं, लेकिन पौराणिक मान्यता के अनुसार सदियों से धार्मिक स्थल बिहार के गया में पितृपक्ष श्राद्ध कर्म और पिंड दान  का विशेष महत्व है। पुराणों के अनुसार गया में पितरों का पिंडदान करने से माता-पिता सहित 108 कुल और 7 पीढ़ियों का उद्धार होता है। पितृ की श्रेणी में मृत पूर्वजों को रखा गया है, जिसमें माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी, गुरु,  बड़े भाई – दीदी आदि शामिल होते हैं। गया में अलग-अलग पूर्वजों के नाम से पिंडदान करने हेतु पूर्व में 360 वेदियां होती है, जिनमें से वर्तमान में 48 वेदियां ही बची है।

पिंडदान का महत्व (Pind Daan Gaya importance)

Pind Daan Gaya is famous in all over the world.

मृत्यु के बाद आत्मा पारिवारिक मोह के कारण उनके आसपास ही भटकती रहती है, इसलिए उन्हें पिंड दान दिया जाता है, ताकि उनकी आत्मा को मोक्ष मिल सके।

पिंड दान करने से पूर्वजों को नरक से मुक्ति मिलती है और वो स्वर्ग में बसते हैं।

पिंड दान करने से पूर्वज खुश होते हैं और उनका आशीर्वाद अपने परिवार के लोगों को बना रहता है।

गया में पिंडदान करने के पीछे की पौराणिक कथा (Pind Daan Gaya history)

गरुड़ पुराण के अनुसार गया में सीता, श्रीराम और लक्ष्मण ने अयोध्या के राजा दशरथ का पिंडदान किया था। मान्यता है कि फाल्गु नदी के किनारे सीता को बिठाकर राम लक्ष्मण ने राजा दशरथ के पिंडदान के लिए सामग्री लेने गए थे। तभी राजा दशरथ ने सीता के सामने आकर पिंडदान की मांग की। तब सीता ने नदी के किनारे मौजूद बालू से पिंड बनाके वटवृक्ष, फाल्गु नदी, केतकी फूल और गाय को साक्षी मान के पिंडदान किया। तब ही राजा दशरथ को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी।  इसलिए यहां के जल और पानी से बने पिंड का दान करने से पितृ खुशी से स्वर्ग प्राप्त करते हैं।

गया में पिंडदान की प्रक्रिया (Pind Daan Gaya process)

पिंडदान परिवार के सबसे बड़े पुरुष या महिला भी कर सकती है।  सबसे पहले फाल्गु नदी  में पवित्र स्थान स्नान किया जाता है। श्राद्ध कर्म के दौरान पारंपरिक वस्त्र पुरुष धोती कुर्ता और महिलाएं साड़ी पहनती हैं। ब्राह्मणों के मार्गदर्शन और मंत्रोच्चारण के साथ चावल, गुड़, मिठाई आदि का चढ़ावा किया जाता हैं। क्षमता के अनुसार श्राद्ध कर्म करने वाले पंडितों को भोजन, वस्त्र और राशन देते हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

गया में पिंडदान की लागत (Pind Daan Gaya cost)

अपने पितृ के दिवगंत आत्मा के शांति के लिए उनके वंशज अपनी क्षमता और इच्छा अनुसार खर्च कर सकते हैं। गया  में पिंडदान वेद पर आधारित होता है। पूरे 48 वेदों मे पिंडदान करने के लिए 16-17 दिन लग जाते हैं। वैसे चार वेदों में ही पिंड दान का विशेष महत्व है, जो कुछ घंटों में हो जाते हैं। खर्च 1000 से लेकर 10000 तक भी हो सकते हैं, जो जैसा वहन कर सके।

उम्मीद है आपको गया मे पिंड दान (Pind Daan Gaya) से जुड़ी सारी जानकारियां मिल गई होगी। आप गया में जाकर पितरों का पिंडदान जरूर करें। इससे उनकी आत्मा को तर्पण मिलेगा और स्वर्ग से आपका कल्याण करें।

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