Friday, March 29
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Sarpatta Parambarai: A 70’s based boxing film with contemporary resonance, bringing ‘Too (many) Fan’ to Tamil cinema

Pa Ranjith’s boxing drama stars Arya, Pasupathy, John Kokken and Dushara Vijayan currently streaming on Amazon Prime Video.
Sarpatta Parambarai streaming on Amazon Prime Video

अभी कुछ दिन पहले अमेज़न प्राइम पर फरहान अख्तर की तूफ़ान अपलोड हुई थी और आज यानि 22 जुलाई को एक और फिल्म अपलोड हुई जिसका नाम हैं, सरपट्टा परम्बरी (Sarpatta Parambarai)। दोनों फिल्मो की इकलौती समानता यह है की बॉक्सिंग दोनों फिल्मो में एक मुख्य किरदार की तरह मौजूद रहता हैं। आज हम यहाँ तूफ़ान की नहीं बल्कि सरपट्टा परम्बरी की बात करेंगे। तमिल भाषा में अपलोड हुई यह फिल्म इतनी बखूभी से अपने सारे किरदारों को लेते हुए आगे बढ़ती हैं की आपको पता नहीं लगता कि यह फिल्म 2 घण्टे 53 मिनट की हैं।

Sarpatta Parambarai 70 के दशक में चल रही राजनीतिक गतिविधयों के बीच चलती हैं। फिल्म की शुरुआत तब के मद्रास यानी अब की चेन्नई के एक गांव से होती हैं जहाँ एक फैक्ट्री में कुछ मजदूर बोरियां धो रहे होते हैं। उन्ही मजदूरों में मौजूद रहता है इस फिल्म का मुख्य किरदार जो की इंतज़ार कर रहा होता है छुट्टी वाले सायरन के बजने का। जैसे ही सायरन बजता है वो बोरी बीच में ही छोड़ के अपनी साइकिल उठाता हैं और उस गांव में शुरू होने जा रहे बॉक्सिंग मैच की जगह पर जल्दी से पहुंच जाता हैं। यह फिल्म उसी किरदार यानी कबीला और बॉक्सिंग मैच के इर्द गिर्द चलती हैं। आज़ादी से पहले जिस गांव के लोग अंग्रेज़ो के साथ बॉक्सिंग मैच खेला करते थे, आज उन्ही गांव के लोगो के बीच कई गुट बन गए हैं और वो आपस में बॉक्सिंग मैच खेल कर बॉक्सिंग रिंग व गांव में अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहते हैं। गांव का सबसे प्रतीष्ठित बॉक्सिंग क्लब या गुट हैं सरपट्टा क्लब, जिसके कोच रंगन होते हैं। रंगन बॉक्सिंग कोच के साथ साथ राजनीतिक शख्स भी हैं और उनके लिए हर मैच को जीतना ज़रूरी है ताकि उनके साथ साथ उनकी पार्टी का भी मान सम्मान भी बरक़रार रहे। रंगन के सरपट्टा क्लब को चुनौती सिर्फ एक शख्स देता है और वो हैं वेमबुल्ली। वेमबुल्ली ही वो शख्श हैं जिसे अब तक सरपट्टा का कोई बॉक्सर मात नहीं दे पाया हैं। आगे कहानी कुछ नाटकीय रूप लेते हुए उस मोड़ पर आती हैं जहाँ वेमबुल्ली और कबीला का आमना सामना होता हैं। सरपट्टा का बॉक्सर कबीला वेमबुल्ली को मात दे पाता या नहीं? कोच रंगन, उनके बॉक्सिंग क्लब और उनकी पार्टी का मान सम्मान बच पाता हैं या सब मिट्टी हो जाता हैं ! यह सब जानने के लिए आपको यह फिल्म अमेज़न प्राइम पर पूरी देखनी होगी।

Arya and Dushara Vijayan in Sarpatta Parambarai

Sarpatta Parambarai की अच्छी बातें

इस फिल्म में बिलकुल भी चमक धमक का ना होना ही इसकी सबसे अच्छी बात हैं। फिल्म की सबसे ख़ास बात यह हैं की इसमें पुरुष बॉक्सिंग रिंग में चाहे जितने कठोर और सख्त हो, लेकिन घर आते ही महिलाएं साबित करती हैं कि असली मालकिन वो ही हैं। फिल्म में बॉक्सिंग मैच के दौरान आपको बिलकुल भी नहीं लगेगा कि कुछ बनावटी हैं या काफी बढ़ा चढ़ा के दिखाया जा रहा हैं। कभी भी यह ख्याल नहीं आता की अर्रे ऐसा थोड़ी ना होता हैं। हालांकि इस फिल्म में कुछ ‘cliche ‘ चीज़ें ज़रूर मिलेंगी मगर शायद यह हमारे देश में बॉक्सिंग फिल्म का नसीब ही हैं। मगर आपको इस बात की गारंटी ज़रूर देते हैं कि इसमें फरहान अख्तर के तूफ़ान के मुक़ाबले ‘cliche ‘ का कचरा कम हैं। पा.रंजीत की फिल्म हो और उसमे छोटे वर्ग, राजनीतिक ड्रामा ना आये ऐसा भला कैसे हो सकता हैं! फिल्म में आपातकाल और उस दौरान हुई दिक्कतों को बढ़िया तरीके से छुआ गया हैं।

अदाकारी की बात

फिल्म शुरू और अंत भले ही आर्या के किरदार यानी कबीला पर होती हो मगर इस फिल्म का हर किरदार अपनी अदाकारी से गहरी छाप छोड़ने में कामयाब नज़र आता हैं। चाहे वो रंगन के किरदार में पसुपथी हो, डैडी के किरदार में जॉन विजयन, मरियम्मा के किरदार में दुशारा और या फिर डांसिंग रोज़ के किरदार में शब्बीर। फिल्म में जब जब डैडी का किरदार आता हैं तब तब अपने आप हंसी आ जाती हैं। वहीँ बॉक्सिंग फिल्म हैं और बॉक्सिंग मैच का ज़िक्र ना हो ऐसा कैसे हो सकता हैं? इस फिल्म में आर्या और डांसिंग रोज़ का एक मैच होता हैं वो कसम से बहुत लाजवाब हैं, खासकर उसमे शब्बीर को डांस व बॉक्सिंग साथ साथ करते देखना काफी सुखमय हैं। अदाकरी में शिकायत यह हैं कि वेमबुल्ली का किरदार निभा रहे जॉन केले को अपनी बॉडी से थोड़ा ज्यादा काम अदाकारी पर भी करना चाहिए था।

Sarpatta Parambarai की ख़राब बातें

इस फिल्म की ख़राब बात मात्र एक ही हैं और वो हैं इसकी कहानी। फिल्म में दृश्य,अदाकारी सबकुछ ठीक है मगर जो दिक्कत तूफ़ान के साथ थी वही दिक्कत यहाँ भी हैं , कहानी एक समय के बाद जैसा आप सोचते हैं वैसे ही चलने लगती हैं यानी predictable हो जाती हैं।

Pa. Ranjith’s Sarpatta Parambarai

ओवरऑल Sarpatta Parambarai का लेखा झोखा

Sarpatta Parambarai की कहानी चार दशक पहले की ज़रूर है,
लेकिन दमन और राजनीतिक अतिरेक से जूझ रहे लोगों के चित्रण में समकालीन प्रतिध्वनि भी है। पा रंजीत के फिल्मो की यही ख़ास बात होती हैं कि वो अपनी कहानी के मूल मुद्दे से बिना भटके,बहुत कुछ कहने में सफल नज़र आते हैं। चाहे वो मद्रास हो, कबाली हो या फिर काला हर फिल्म में वो कुछ ना कुछ ऐसा दिखा जाते हैं जो की हमे मौजूदा हाल पर सोचने को मजबूर करता हैं। Sarpatta Parambarai बॉलीवुड में फिल्मे बना रहे और बनाने की सोच रखने वाले हर शख़्स को देखनी चाहिए।

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