गाँधी, गोडसे और हत्या: यथार्थ की जद में
गांधी की हत्या के सम्बन्ध में नाथूराम गोडसे ने कोर्ट में कई तर्कों के साथ रखा था अपना पक्ष। उन सभी तर्कों का यथार्थ से कितना वास्ता है?
सच और झूठ में एक बुनियादी फर्क है। झूठ कल्पनाओं का परिणाम है, इसीलिए वह रोमांचित करता है। सच चूँकि तथ्य होता है इसलिए नीरसता और उब पैदा करता है। झूठ के आकर्षण को देखते हुए वॉट्सएप युग से भी बहुत पहले मार्क ट्वैन (Mark Twain) ने झूठ के तारीफ़ में कहा था, "जब तक सच अपना जूता पहनता है, झूठ पूरी दुनिया की परिक्रमा कर आता है।" झूठ के इस सच्चे तारीफ़ से आप झूठ की हैसियत का अंदाज़ा लगा सकते हैं। लेकिन, झूठ के इस हैसियत को नकारते हुए गांधी ने सत्य को चुना। गांधी का सत्य हमारा सत्य नहीं था। वो नीरस नहीं, सरस था। चलिए एक वाक्या से शुरू करते हैं।
उन दिनों गाँधी दूसरे गोलमेज सम्मेलन (2nd Round Table Conference) के लिए लंदन में थे। जब उन्हें किंग जॉर्ज पंचम ...