1232 KMS movie review: During the COVID-19 lockdown in India, the country faced a mass-migration of labourers from various parts of India to their villages in Uttar Pradesh and Bihar. National Film Awardee director, Vinod Kapri travelled 1232 kms from Ghaziabad to Saharsa, Bihar with seven migrant labourers to document their excruciating journey, which the documentary is all about.
The Ganga Times, Entertainment: 2020 कोरोना लेकर आया और वो अकेला ना आया बल्कि अपने साथ बहुत कुछ लाया, बहुत कुछ दिखाया। पूरे कोरोनकाल के दौरान मजदूरों के पलायन और अलग अलग दृश्यों ने हर बार जीवन को उसी एक पंक्ति पर लाकर ठहरा दिया,
“जाना हिंदी की सबसे खौफनाक क्रिया है”
यह डाक्यूमेंट्री 24 मार्च 2021, यानी की Lockdown लगने के ठीक एक साल बाद Hotstar पर रिलीज हुई है। इसमें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विजेता निर्देशक विनोद कापड़ी (Vinod Kapri) द्वारा कुछ मजदूरों के साथ हजारों किलोमीटर का सफर तय कर कैद किये गए मानवीय पहलुओं को दिखाया गया है। दिल्ली- गाज़ियाबाद में रह रहे 7 दिहाड़ी मजदूर साईकल से अपने गांव सहरसा, बिहार जाने का फैसला करते हैं। सहरसा की गाज़ियाबाद से दूरी 1232 किमी है इसीलिए इस डॉक्यूमेंट्री का नाम भी 1232 KMS रखा गया। लगभग 1 घंटे 30 मिनट की इस डॉक्यूमेंट्री में आपको वो सब दिखेगा, महसूस होगा जो शायद आप लॉकडाउन के दौरान अपने किचन में नए-नए व्यंजन बनाते हुए ना देख पाए और ना ही महसूस कर पाए होंगे।
इस डॉक्यूमेंट्री में एक जगह विनोद कापड़ी साईकल चला रहे मजदूर से पूछते है,
“कौन सी ऐसी बात है जो तुम्हें चला रही है?”
बिना रुके मजदूर कहता है,
“माँ की याद…”
इसमें ऐसे ही कई संवाद मौजूद है जो आपको रोने, सोचने और बहुत कुछ कहने-लिखने पर मजबूर कर देंगे। COVID-19 Lockdown के बाद एक आंकड़ा यह आया था कि इस दौरान सबसे ज्यादा साईकल खरीदी गई। सामान्य समय मे यह आंकड़ा सुन पर्यावरण प्रेमी खुश होते मगर आज वजह कुछ और थी। यह सामान्य समय नही था मजदूरों ने साईकल खरीदी ताकि वो यह सो कॉल्ड स्मार्ट सिटी छोड़ सके।
1232 KMS Movie Review: Rekha Bhardwaj’s poignant voice touches everyone’s heart and soul
मैंने कहीं पढ़ा था कि दु:ख और विपदा में बड़ा भेद होता है, दु:ख में मृत्यु जैसी प्रशान्ति होती है और विपदा में जीवन जैसा आवेग। दुख में एक ठहराव होता है मगर विपदा में नही, विपदा जब आती है तो सर पर नाचती है। दुख को हम अलंकारों से सजा सकते है मगर विपदा को नहीं।
एक जगह Vinod Kapri पूछते है,
“भगवान को मानते है”
मजदूर कहता है,
“हाँ, मानते है..”
कुछ दृश्यों बाद एक साईकल वाला किसी संवाद के उत्तर में कहता है,
“जो मदद करता है वो ही भगवान होता है…”
आपको यह संवाद अंदर तक हिला डालते हैं क्योंकि यह कोई फ़िल्म नहीं है और ना हीं यहाँ किसी ने डॉयलाग लिखें हैं, जो भी निकल रहा है या तो मन से निकल रहा है या दुख से। इस डाक्यूमेंट्री में कैमरे से कैद किए सारे दृश्य इतने अच्छे हैं की कहीं-कहीं बैकग्राउंड में चलते सूरज को देख ऐसा लगता है मानो वो बात करना चाह रहा हो, अपनी कड़क रोशनी के पीछे का राज़ बताना चाह रहा हो।
यह डॉक्यूमेंट्री वर्त्तमान समय के समाज का सबसे शानदार यादों का संग्रह है और इसे बनाने के लिए पूरी टीम को सलाम है। सबसे खूबसूरत और सबसे हिला देने वाला हिस्सा है इस डॉक्यूमेंट्री का संगीत। रेखा भारद्वाज (Rekha Bhardwaj) की आवाज में ‘ओ रे बिदेसिया’ शहरी लोगों को आईना दिखते हुए यह एहसास दिलाता है कि देखो हमारी हिम्मत और हमारा जज़्बा तुम्हारी सोच से कितना ऊपर है। जिन्होंने अपना दिन-रात एक कर शहर बनाया, उन्हें ही विपदा के समय अपने गाँव जाना पड़ रहा है।
यह डॉक्यूमेंट्री के रूप में सबसे ज़रूरी संग्रह है, जिसे आज की पीढ़ी और आने वाली कई पीढ़ियों को दिखाया जाना चाहिए। ताकि इसे देख उनके अंदर मानवता, इंसानियत और संवेदनशीलता का भाव रहे और अगली दफा गर कोई आपदा/महामारी आए तो यूँ मजदूरों को साईकल से 1232 किमी चल अपने गाँव ना जाना पड़े।
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