● निर्मल वर्मा और गगन गिल की किताबों का हुआ लोकार्पण
● विनीत कुमार की किताब ‘मीडिया का लोकतंत्र’ का हुआ लोकार्पण
नई दिल्ली. विश्व पुस्तक मेला में राजकमल प्रकाशन समूह के जलसाघर में आज निर्मल वर्मा और गगन गिल की किताबों का लोकार्पण हुआ। इस दौरान गगन गिल ने अपने जीवन से जुड़े कई आत्मीय संस्मरण साझा किए। उन्होंने कहा “पिछले 18 सालों में मुझे कई लोगों के साथ काम करने का मौक़ा मिला मगर जैसा सामंजस्य राजकमल और अशोक जी के साथ था वैसा अन्यत्र कहीं नहीं मिला। मैं अभिभूत हूँ कि आज इतने वर्षों बाद निर्मल जी और मेरी किताबें एक नए कलेवर के साथ राजकमल से प्रकाशित हो रही हैं। राजकमल से हमारा पारिवारिक संबंध रहा है। हमेशा से उत्कृष्ट रचना प्रकाशित करने की राजकमल प्रकाशन की परंपरा रही है, निर्मल जी के साहित्य के लिए अशोक जी और राजकमल से उचित कोई प्रकाशक नहीं हो सकता, ऐसा मेरा विश्वास है।”
इस दौरान राजकमल प्रकाशन समूह के अध्यक्ष अशोक महेश्वरी ने प्रकाशकीय टीम का मंच से परिचय कराया और बताया कि ये हमारी सभी टीम के सामूहिक प्रयास का ही फल है कि यह किताबें एक नए कलेवर में पाठकों तक पहुँच पाई। पिछले कुछ दिनों से ये किताबें विश्व पुस्तक मेला में उपलब्ध हैं और पाठकों की अच्छी प्रतिक्रिया सुनने को मिल रही है। सभी ने इन किताबों को खूब-खूब सराहा और कहा कि निर्मल जी की किताबें ऐसी ही होनी चाहिए थी। उन्होंने कहा “मुझे निर्मल जी स्नेह और बहुत प्रेम मिला है मैं उसे कभी भुला नहीं सका। वर्षों पहले जिन परिस्थितियों में निर्मल जी की किताबें अन्यत्र छपने गयीं, वह मेरे लिए दुखद और राजकमल प्रकाशन के लिए अप्रिय प्रसंग बना रहा। ख़ैर, हमने अपनी भूल को सुधारा है। मुझे निजी तौर पर, और सांस्थानिक रूप से भी बहुत प्रसन्नता हो रही है कि निर्मल जी और गगन जी की सभी किताबें अपने मूल प्रकाशन में वापस लौट आई हैं।”
इस सत्र के दौरान अतिथियों ने निर्मल वर्मा से जुड़े उनके संस्मरण साझा किए। मंचासीन वक्ताओं में प्रियदर्शन ने कहा “मैं सोचता हूँ आज का युवा पाठक बिना किसी आलोचनात्मक उद्यम के निर्मल जी क्यों और कैसे पढ़ सकता है। फिर मुझे समझ आया आधुनिकता की जो एकांतता है, विस्थापन का जो अभिशाप है, हर कोई अपना घर खोज रहा है। इन भावों को सबसे करीबी ढंग से निर्मल वर्मा ने लिखा हूं यही कारण है कि वे आज के समय में इतना समकालीन, प्रासंगिक और लोकप्रिय बने हुए हैं।” रवींद्र ने कहा “निर्मल जी के वैचारिक साहित्य के बिना साहित्य की चर्चा खोखली सी दिखाई जान पड़ती है।” आनंद कुमार ने कहा “सौ किताबें एक तरफ़ निर्मल वर्मा की किताबें एक तरफ़” वहीं पर गीत चतुर्वेदी ने कहा “उस दौर के साहित्यकारों में युवाओं से सबसे ज़्यादा जुड़ते हैं।” इस सत्र के अंत में रवीश कुमार ने निर्मल जी के उपन्यास ‘रात का रिपोर्टर’ से अंशपाठ किया और कहा कि मैंने निर्मल वर्मा को पढ़ा है इसलिए मैं कह सकता हूँ कि निर्मल वर्मा को पढ़ना चाहिए।
निर्मल वर्मा और गगन गिल की सभी किताबों का प्रकाशन अब राजकमल प्रकाशन कर रहा है। इनमें से निर्मल वर्मा की छह किताबें– वे दिन, लाल टीन का छत, रात का रिपोर्टर, एक चिथड़ा सुख (उपन्यास); परिंदे (कहानी संग्रह); चीड़ों पर चाँदनी (यात्रा संस्मरण) और गगन गिल के काव्य संग्रह यह आकांक्षा समय नहीं का शनिवार को लोकार्पण हुआ।
शैलजा पाठक की पुस्तक ‘कमाल की औरतें’ का लोकार्पण
इससे पहले, जलसाघर में आयोजित कार्यक्रम के पहले सत्र में शैलजा पाठक की किताब ‘कमाल की औरतें’ का लोकार्पण हुआ। इस सत्र में ममता कालिया और रामजी तिवारी की विशिष्ट उपस्थिति रही और कार्यक्रम का संचालन सुदीप्ति ने किया। कार्यक्रम के दौरान ममता कालिया ने कहा “शैलजा एक संत की तरह बेबाकी से अपनी बातें लिखती हैं बिना ये सोचे बिना कि इनके ऊपर कोई हमला तो नहीं होगा। जीवन के छोटे-छोटे लम्हें, कस्बें की औरतों की समस्याएं और पीड़ाएं इस कविता संग्रह में व्यक्त हैं लेकिन वो स्त्रियाँ लाचार होकर भी लाचार नहीं है,उनमें साहस है।” रामजी ने कहा “यह कविता मनुष्य के जनतान्त्रिक विकास को दर्शाती है। पुरुष समाज ने स्त्रियों कोण कितने गहरे प्रताड़ित किया है यह इस कविता संग्रह में दर्ज़ है।” वहीं पर शैलजा पाठक ने कहा “एक मैजिकल बॉक्स जिसको ख़ाली कर देने पर वह फिर वह भर जाता है। मेरी कविताओं में औरतें उसी तरह हैं जो कभी ख़त्म नहीं हो सकती। मैं महिलाओं के लिए हमेशा लिखती रहूँगी।”
दूसरे सत्र में सुमन केशरी की किताब ‘कविता के देश में’ पर लीलाधार मंडलोई ने लेखक से बातचीत की। कार्यक्रम के दौरान लीलाधार मंडलोई ने कहा “इस पुस्तक में आत्म और पर संवाद की शैली है साथ ही यह स्त्री की दृष्टि और स्त्री के विमर्श से उपजी पुस्तक है।” वहीं पर सुमन केशरी ने कहा “कविता ही साहित्य की मूल कृति है। अब मूल का पाठ कैसे पढ़ जाए यही मैंने इस पुस्तक में दिखने का प्रयास किया है।”
कार्यक्रम के अगले सत्र में प्रत्यक्षा के नए कहानी संग्रह ‘अतर’ का लोकार्पण हुआ। इस सत्र में प्रियदर्शन, प्रभात रंजन और सुदीप्ति बतौर वक्ता मौजूद रहे।
इसके बाद सोरित गुप्तो की किताब ‘महामारी का रोजनामचा’ पर विनीत कुमार ने उनसे बातचीत की। परिचर्चा के दौरान वक्ताओं ने कहा “कोरोना तो आया और चल गया लेकिन हाँड़ मांस के शरीर से ज़्यादा इंसानियत मरती है। इसी इंसानियत के मरने को इस पुस्तक में दर्ज़ किया गया है।” इसी दिशा में सोरित गुप्तो ने आगे जोड़ते हुए कहा कि “कोरोना के दौरान आम नागरिकों के बारे में ज़रा भी सहानुभूति नहीं दिखाई गई दुर्भाग्य की बात यह है कि ऐसा करने वाले चेहरे आज भी हैं इसलिए महामारी आज भी बरक़रार है।”
अगले सत्र में विनय कुमार के काव्य नाटक ‘आत्मज’ का लोकार्पण हुआ। इस सत्र में अजय कुमार, ज्योतिष जोशी और प्रयाग शुक्ल की विशिष्ट उपस्थिति रही। वहीं सत्र का संचालन आशीष मिश्र ने किया। परिचर्चा के दौरान वक्ताओं ने कहा की विनय कुमार एक साहित्यकार के साथ-साथ एक मनोवेत्ता भी हैं अतः एक पिता, पुत्र और पत्नी का संबंध कैसे होता है, इस पुस्तक में उन्होंने बखूबी दिखाया है।
इसके बाद देवेश की नई किताब ‘मेट्रोनामा : हैशटैग वाले किस्से’ का लोकार्पण हुआ। इस सत्र में रवीश कुमार और विनीत कुमार की उपस्थित रहे।
अगले सत्र विनीत कुमार की नई किताब ‘मीडिया का लोकतंत्र’ का लोकार्पण हुआ जिसमें रवीश कुमार ने लेखक से बातचीत की।परिचर्चा के दौरान रवीश कुमार ने कहा “हिंदी में ऐसी किताब लिखी गई है यह खुशी की बात है जो अन्य भाषाओं में लिखी गई श्रेष्ठ कविताओं के समकक्ष है। इस किताब को पढ़कर हिंदी पाठकों, मीडिया प्रेमियों में संभावनाओं के द्वार खुलेंगे। मुझे विश्वास है कि इसे पढ़कर निश्चित रूप से आप टीवी और मीडिया के बारे में कुछ नया और महत्त्वपूर्ण सीखेंगे।” वहीं पर लेखक ने कहा “इस किताब में मैंने कहीं ऐसा नहीं कहा कि मीडिया को कैसा होना चाहिए। मैंने बस ये सवाल खड़े किए है कि जिन वादों, इरादों, यादों की यहाँ बात की जाती है , क्या उनका अनुसरण भी किया जाता है।”
इसके बाद नेहा नरूका के कविता संग्रह ‘फटी हथेलियाँ’ पर बातचीत हुई। इस सत्र के दौरान रश्मि भारद्वाज ने कवि से बातचीत की। परिचर्चा के दौरान नह ने कहा “मैं सिर्फ़ मैं ही नहीं हू। मैं अपने आपको नारीवाद के अंतर्गत रखती हूँ और स्त्री की पीड़ाएं उनके संघर्ष और सवालों को दिखने का प्रयास करती हूँ। मैंने डिमांड के लिए कभी बोल्ड कविता नहीं लिखा है। मुझे लगता है मेरे ऊपर यहार्थ ज़्यादा हावी है और मैं सच्चाई को ही व्यक्त करती हूँ। वहीं कार्यक्रम के अंतिम सत्र में सौम्य मालवीय के कविता संग्रह ‘एक परित्यक्त पुल का सपना’ का लोकार्पण हुआ। इस दौरान मंच मौजूद वक्ता असद जैदी ने कहा, “ये कविताएँ बीते दो-एक दशकों में उपजी बेचैनियों और निराशाओं को एक स्वर देने का प्रयास करती हैं। वक़्त की चोट को शब्दों में महसूसना चोट पर मरहम का ही काम नहीं करता, बल्कि उसे जिन्दा भी रखता है।” इसके बाद सौम्य ने अपने संग्रह से कुछ कविताओं का पाठ किया।
कल होंगे ये कार्यक्रम
राजकमल प्रकाशन समूह के स्टॉल जलसाघर में कल 18 फरवरी (रविवार) को दोपहर एक बजे से आयोजित कार्यक्रम में कृष्णा सोबती के अप्रकाशित उपन्यास ‘वह समय गर्दन की तिलक पर’ का लोकार्पण होगा। वहीं अन्य सत्रों में में ज्ञान चतुर्वेदी की किताब ‘एक तानाशाह की प्रेमकथा’; उपासना की किताब ‘एक ज़िंदगी… एक स्क्रिप्ट भर’; सोनी पाण्डेय की किताब ‘सुनो कबीर’ का लोकार्पण होगा। वहीं राजेश पांडेय की किताब ‘वर्चस्व’ और आशा प्रभात की किताब ‘उर्मिला’ पर बातचीत होगी।
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