हिन्दू धर्म में भगवान शिव को प्रमुख देवताओं में से एक माना जाता है। सनातन धर्म में भगवान शिव को अनेकों नामों से जाना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, सोमवार के दिन गंगाजल और दूध से भगवान शिव (Lord Shiva) का अभिषेक करना चाहिए। सोमवार के दिन भगवान शिव का विधि-विधान से पूजन और व्रत करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं और सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। सोमवार के दिन भगवान शिव के साथ-साथ माता पार्वती का भी पूजन किया जाता है। कहते हैं कि सोमवार के दिन जागरण कर शिवपुराण का पाठ करने से उत्तम फल की प्राप्ति होती है। भगवान शिव को भोलेनाथ (Bholenath), शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ आदि नामों से भी जाना जाता है।
भगवान शिव से जुड़े हैं कई रहस्य। सर्वप्रथम भगवान शिव शंकर ने ही धरती पर जीवन के प्रचार-प्रसार का प्रयास किया, इसलिए उन्हें ‘आदिदेव’ भी कहा जाता है। ‘आदि’ का अर्थ प्रारंभ होता है, आदिनाथ होने के कारण उनका एक नाम ‘आदिश’ भी है। शिव का धनुष पिनाक, चक्र भवरेंदु और सुदर्शन, अस्त्र पाशुपतास्त्र और शस्त्र त्रिशूल है। उक्त सभी का उन्होंने ही निर्माण किया था।
शिव के गणों में भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय और विजय प्रमुख हैं। इसके अलावा, पिशाच, दैत्य और नाग-नागिन, पशुओं को भी शिव का गण माना जाता है। भगवान शिव को देवों के साथ असुर, दानव, राक्षस, पिशाच, गंधर्व, यक्ष आदि सभी पूजते हैं। वे रावण को भी वरदान देते हैं और राम को भी। उन्होंने भस्मासुर, शुक्राचार्य आदि कई असुरों को वरदान दिया था। शिव, सभी आदिवासी, वनवासी जाति, वर्ण, धर्म और समाज के सर्वोच्च देवता हैं।
भगवान शिव की पत्नियों के बारे में शास्त्रों में उल्लेख मिलता है। पहली पत्नी प्रजापति दक्ष की पुत्री सती थीं, उन्हीं ने दूसरा जन्म हिमवान के यहां लिया और पार्वती के नाम से जानी गईं। कहा जाता है इनके अलावा गंगा, काली और उमा भी शिव की पत्नियां थीं। भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र कार्तिकेय हैं। गणेश महाराज दूसरे पुत्र हैं, जिन्हें माता पार्वती ने उबटन से निर्मित किया है। कहते हैं कि एक अनाथ बालक जिसका नाम सुकेश था, उसे भी भगवान शिव ने पाला। इसी तरह जलंधर शिव के तेज से उत्पन्न हुए। अय्यप्पा शिव और मोहिनी के संयोग से जन्में। भूमा उनके ललाट से टपके पसीने से जन्में। अंधक और खुजा का ज्यादा उल्लेख नहीं मिलता।
माना जाता है कि शिव ही एकमात्र ऐसे देवता हैं, जिन्होंने हर काल में अपने भक्तों को दर्शन दिया है। वे सतयुग में समुद्र मंथन के समय भी उपस्थित थे और त्रेता काल में राम के समय भी, वे द्वापर में महाभारत काल में भी थे और कलिकाल में विक्रमादित्य को भी शिव के दर्शन होने का उल्लेख मिलता है। सप्तऋषियों को भगवान शंकर के प्रारंभिक शिष्य माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इन सप्तऋषियों के द्वारा ही पृथ्वी पर भगवान शिव के ज्ञान का प्रचार-प्रसार किया गया था।
वीरभद्र, पिप्पलाद, नंदी, भैरव, महेश, अश्वत्थामा, शरभावतार, गृहपति, दुर्वासा, हनुमान, वृषभ, यतिनाथ, कृष्णदर्शन, अवधूत, भिक्षुवर्य, सुरेश्वर, किरात, सुनटनर्तक, ब्रह्मचारी, यक्ष, वैश्यानाथ, द्विजेश्वर, हंसरूप, द्विज, नतेश्वर आदि हुए हैं। वेदों में रुद्रों का जिक्र है। रुद्र 11 बताए जाते हैं कपाली, पिंगल, भीम, विरुपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, आपिर्बुध्य, शंभू, चण्ड तथा भव।
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