After a big win in West Bengal, Manata Banarjee will be sworn in as the state’s chief minister for third time in a row. Here are the 6 reasons why Didi was able to defeat the might Modi Army in West Bengal Election 2021.
The Ganga Times, West Bengal: पांच राज्यों — तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, असम, पुडुचेरी, और केरल में हुए चुनावों के नतीजे करीब करीब साफ़ हो चुके हैं। तमिलनाडु में DMK-Congress की गठबंधन, केरल में लेफ्ट, पुडुचेरी में NDA, असम में भाजपा, और बंगाल में ममता बनर्जी की TMC को जीत मिली है।
अलग अलग राज्यों में अलग अलग मुद्दों पर चुनाव लड़ा गया था। और हर जगह हार-जीत के अपने कारण थे। तमिलनाडु में तो माना ही जा रहा था की वहां सत्ता परिवर्तन होना वाला है। केरल में पिनरई विजयन को बेहतर कोविड मैनेजमेंट का इनाम मिला है। असम की बात करें तो वहां कांग्रेस के पास कोई बड़े चेहरे के न होने और जबरदस्त ध्रुवीकरण का फायदा भाजपा को मिला है।
6 Reasons Why Mamata Banarjee’s Trinamool Congress Swept West Bengal Election 2021
पश्चिम बंगाल का चुनाव, जिसकी चर्चा हर कोई कर रहा था। भाजपा ने अपनी पूरी चुनावी फ़ोर्स वहां लगा दी थी। प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, रक्षामंत्री, से लेकर कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने ममता बनर्जी को हराने में अपना सब-कुछ झोंक दिया था। लेकिन सबको धता बताते हुए दीदी ने बंगाल फ़तह कर लिया। हालाँकि वो अपनी खुद की सीट, नंदीग्राम हार चुकी हैं, लेकिन भाजपा के चुनावी रथ को रोककर दीदी ने इतिहास रच दिया है। तो आज हम बात करेंगे उन 6 factors की जिसके कारण ममता भाजपा को हराने में सफल रहीं।
भाजपा में CM चेहरे की कमी (BJP had no CM face)
भाजपा की तरफ से एक विश्वसनीय और स्थानीय मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं होना उनके लिए भारी पड़ गया। प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर लड़ा गया ये चुनाव भाजपा के लिए फिर से फीका साबित हुआ जैसा की वो हरियाणा और झारखण्ड में देख चुके हैं। बनर्जी हमेशा से बंगाल के लोगों के लिए मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार्य चेहरा रही हैं, इसके बावजूद की उनकी पार्टी को भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना करना पड़ा है।
बंगाली बनाम बाहरी (Bengali vs Outsiders in West Bengal Election 2021)
ममता बनर्जी की क्षेत्रवाद वाली राजनीति उनको फिर से मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाने में अहम् भूमिका निभाती है। TMC ने चुनावी अभियान ने मोदी-शाह की जोड़ी को बाहरी बताती रही। ये बात कुछ हद तक सही भी रही है क्योंकि भाजपा के स्टार प्रचारक हमेशा हिंदी में भाषण देते थे जबकि TMC के पास ममता के साथ साथ बंगाली भाषा बोलने वाले अनेक दिग्गज मौजूद थे।
हिन्दू मुस्लिम ध्रुवीकरण ने टीएमसी को अधिक फायदा पहुंचाया (Hindu-Muslim Polarisation)
हालाँकि ध्रुवीकरण की राजनीति ने भाजपा को फायदा तो पहुंचाया, लेकिन ये तृणमूल के लिए ज्यादा फायदेमंद रहा।
ध्रुवीकरण के कारण भाजपा को कुछ हिंदू वोट हासिल तो हुए, लेकिन इससे मुसलमान वोट (Muslim Vote Bank) पूरी तरह से बनर्जी के पक्ष में चला गया। माना जाता है की मुसलमान सीपीएम-कांग्रेस गठबंधन का वोट बैंक है। लेकिन अब स्पष्ट रूप से बनर्जी के लिए समर्पित नजर आ रहे हैं। माना जा रहा है की भाजपा की आक्रामक CAA और NRC अभियान ने मुसलमानों को ममता के नज़दीक पहुंचा दिया।
ममता बनर्जी की कल्याणकारी योजनाएँ
दीदी की महिलाओं और अनुसूचित जाति और जनजातियों को दी गई नकद योजनाओं का असर इस चुनाव में पूर्ण रूप से दिखा। विशेष रूप से महिलाओं के लिए – कन्याश्री और रूपश्री योजनाओं का चुनावी लाभ TMC को जबरदस्त तरीके से मिला।
कन्याश्री योजना के तहत, कक्षा 8 पास करने वाली बालिका को 25,000 रुपये मिलते हैं जबकि रूपश्री योजना 18 वर्ष की होने पर एक लड़की के परिवार को 25,000 रुपये देने का वादा करती है।
ममता का नंदीग्राम गेम प्लान (Mamata Banarjee’s Nandigram Gameplan)
एक कारण यह भी हो सकता है की TMC ने भाजपा के चुनावी इंजीनियरिंग में सेंध मारने के लिए खुद नंदीग्राम से मैदान में उतर गई ताकि उनका पूरा फोकस यहीं तक सीमित हो जाये और वो बाकी सीटों पर अपना कमाल कर सकें। चुनावी अभियान के वक़्त हुआ भी ऐसा ही था की भाजपा के स्टार प्रचारकों ने नंदीग्राम में दीदी को हराने में ज्यादा ताकत लगा दी।
कोरोना का प्रभाव (The Corona Impact)
माना जा रहा है की अंतिम के दो चरणों में भाजपा को जबरदस्त नुक्सान हुआ। क्योंकि तब तक लोगों के सामने मोदी सरकार द्वारा कोरोना का कुप्रबंध बाहर आ चुका था और मीडिया में भाजपा की जबरदस्त किरकिरी हो रही थी। अमित शाह और प्रधानमंत्री मोदी को लोग भीड़ जुटाने के लिए हर तरफ कोस रहे थे। शायद इसका प्रभाव भी वोटरों पर पड़ा होगा।
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