Ajeeb Dastaans is an anthology film that revolves around four different stories, associated with each other. These stories are about uneasy feelings, secrets, toxicity, and several things in a relationship. This blog is Ajeeb Daastaans Review, touching several aspects of the movie.
Director: Neeraj Ghaywan, Kayoze Irani, Shashank Khaitan, Raj Mehta
Cast: Konkona Sen Sharma, Aditi Rao Hydari, Nushrat Bharucha, Fatima Sana Shaikh, Jaideep Ahlawat, Shefali Shah, Manav Kaul, Abhishek Banerjee, Tota Roy Chowdhury
Producers- Karan Johar, Apoorva Mehta
Ajeeb Daastaans: A four-part anthology
Netflix पर अपलोड हुई है एक एंथोलॉजी फ़िल्म (Anthology)। एंथोलॉजी का मतलब संकलन और यह फ़िल्म असहज भावनाओं से भरा एक संकलन है। चार अलग-अलग कहानियों को दिखाती है, यह अजीब दास्तान्स।
अलग अलग निर्देशकों द्वारा निर्देशित इस फ़िल्म की चार कहानियों में पहली कहानी हैं, मजनु। मजनु का निर्देशन शशांक खैतान ने किया है। इस कहानी में आपको जयदीप अहलावत, फातिमा सना शेख और अरमान रहलान मुख्य भूमिका में नज़र आयेंगे। गठबंधन शादी की नींव पर बनी यह कहानी हमें बिखरे रिश्ते की दास्तान सुनाती हैं।
फातिमा इस कहानी में लिपाक्षी के किरदार को निभाने की एक अच्छी कोशिश करती है। वही जयदीप अहलावत अपने फिल्मी कैरियर के शायद सबसे अलग भाव वाले किरदार को बखूभी निभाते हुए नज़र आते हैं। कहानी का निर्देशन शशांक खैतान ने बढ़िया किया है मगर पटकथा और बेहतर हो सकती थी।
Ajeeb Daastaans Review Part 2: Khilona
इसी कड़ी में दूसरी कहानी है, खिलौना। खिलौना का निर्देशन राज मेहता ने किया हैं। इस कहानी में मुख्य किरदार के रूप में अभिषेक बनर्जी और नुशरत बरूचा है। अगर चारों कहानियों को एक लाइन में रख तुलना की जाए तो सबसे ज्यादा असहज ये कहानी ही करेगी। इस कहानी को समाज के दो वर्गों पर आधारित किया गया है- पहले है कोठी वाले तो दूसरे है कटिया वाले। समाज के इन्ही दो हिस्सों के बीच कुछ अनहोनी घटनाएं होती है और उसका शिकार मीनल यानी नुशरत भरुचा) और सुशील यानी अभिषेक बनर्जी बनते हैं। इस कहानी में Surprise element है इनायत वर्मा और इस कहानी की सबसे मजबूत चीज़ है इसकी पटकथा और ऊपर से भी इसका क्लाइमेक्स।
कहानी का क्लाइमेक्स इतना तगड़ा है कि आप उसको देख कांप उठेंगे। सुमित सक्सेना ने काफी कसी हुई कहानी लिखी है। नुसरत, अभिषेक, इनायत सभी ने अपने अपने किरदार को काफी अच्छे ढंग से निभाया है। राज मेहता का निर्देशन इस कहानी को ना तो धीमा करता है और ना ही बोरिंग। इस कहानी का सब कुछ सुंदर है।
Ajeeb Daastaans Review Part 3: Geeli Pucchi
अजीब दास्तान्स की अगली कहानी है, गीली पुच्ची। नीरज घेवान द्वारा निर्देशित इस कहानी में एक साथ कई विषयों को सामने लाने की कोशिश की गई है। नीरज घेवान किसी फिल्म को निर्देशित करें और उसमें जाति व Gender की बात ना हो ऐसा हो सकता है भला! हालांकि इस कहानी में sexuality के विषय को भी छुआ गया हैं। इस कहानी में कोंकणा सेन शर्मा और अदिति राव हैदरी है। दोनों ही उम्दा कलाकार हैं और दोनों का साथ आना कहानी को एक नयापन देता है।
इस कहानी की पटकथा काफी सधी हुई है, इसमे जातिवाद और समलैंगिता को अच्छे से छुआ गया है। नीरज
घेवान का निर्देशन इस कहानी को सरल बनाता है मगर यह कहानी थोड़ी लंबी लगती है। सिद्धार्थ दिवान की सिनेमेटोग्राफी इस कहानी को पूरा देखने के लिए बांधे रखती है।
Ajeeb Daastaans Review Part 4: Manav Kaul’s Ankahi is a tribute to Charlie Chaplin on his birthday
इस दास्तान्स की आखिरी कहानी है, अनकही। इसका निर्देशन कायोज़ ईरानी (Kayoze Irani) ने किया है और इस कहानी की मुख्य भूमिका में मानव कौल (Manav Kaul) और शेफाली शाह (Shefali Shah) हैं। नताशा यानी की शेफाली शाह इस कहानी में अपनी बेटी के लिए sign language सीखती हैं। और इन्ही सब के बीच उनकी मुलाकात एक फोटोग्राफर यानी मानव कौल से होती है, जो बोल और सुन नहीं सकते। दोनों sign language में बात करते है और एक दूसरे के नज़दीक आ जाते है मगर यहाँ भी कुछ ऐसा होता है जो कहानी को एक असहज मोड़ पर लाकर छोड़ देता हैं।
यूँ तो मानव कौल और शेफाली शाह जब जब sign language का इस्तेमाल कर बात करते है और हँसते है, तब तब हमें साइलेंट फिल्मों के राजा चार्ली चैपलिन की याद आती है। और देखिए क्या गज़ब का संयोग है कि आज यानी 16 अप्रैल को चार्ली चैपलिन का जन्मदिन भी हैं (16 April Charlie Chaplin birthday)। मानव कौल इस कहानी में बिना एक शब्द बोले दिल जीत लेते हैं। कायोज़ ईयानी नए रिश्ते बनने की गुंजाइश और पुराने रिश्ते को बचाने की उठा पठक को दिखाने में बिल्कुल सफल नज़र आते है। उज़मा खान और सुमित सक्सेना द्वारा लिखित पटकथा इस फिल्म को और मजबूती देती है।
Why makes Ajeeb Daastaans unique?
अजीब दास्तान्स की इन चार कहानियों में सब अलग हैं सिवाय एक चीज़ के और वो है हर कहानी में संगीत का होना। इस पूरी फिल्म में इस्तेमाल हुए संगीत इसको बोरिंग नहीं बल्कि फ़िल्म की कहानी को आगे बढ़ाने का काम करते है। मजनु कहानी में बगियन में भवरा हो या खिलौना कहानी में ज़िन्दगी इत्तेफाक है या गीली पुच्ची में यही कहना, संग रहना और या आखिरी कहानी अनकही में तेरी मेरी बातें, दिल के धागों से। यह सब संगीत इस फ़िल्म में चार चाँद लगाते हैं।
आइए अब यह जान लीजिए कि आखिर क्यों देखे यह फ़िल्म और क्या है Gangtimes टेक तो अगर आपको रिश्ते, रिलेशनशिप और समाज से जुड़े विषयों में दिलचस्पी है तो आप यह फ़िल्म देख सकते है। नेटफ्लिक्स ने इस फ़िल्म को 18+ की कैटेगरी में रखा है तो आप अगर 18 साल के है तभी देंखे यह फ़िल्म। ओवरऑल यह एक अच्छी एंथोलॉजी है। इसे देख आप कांपेंगे, चौकेंगे, सोचने पर मजबूर होंगे मगर 2 घंटे 22 मिनट बाद बहुत कम चांस है कि इसे देख आप निराश हो जाए।
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