#FarmersProtest: While farmers are planning to launch a new protest in various parts of North India, a big question arises on whether to gather in large number or not, keeping in view the Covid-19 pandemic in India. Farmers protest during pandemic.
The Ganga Times, Farmers Protest: कोरोना के मामले कम होने शुरू हो गए है, हालांकि खतरा अभी पूरी तरह से टला नहीं है। रोज़ाना महामारी के अंदर से एक नई महामारी निकल रही है। कही ब्लैक फंगस तो कही वाइट फंगस के मामलो में बढ़ोत्तरी की बात हो रही है। और इसी बीच कल शाम एक खबर आती है कि केंद्र के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसान एक बार फिर बड़ा प्रदर्शन करने की तैयारी में है। रविवार को हरियाणा के करनाल से हजारों की संख्या में किसान दिल्ली के समीप सिंघु बॉर्डर के लिए रवाना हुए है। किसान इस महामारी के माहौल में दोबारा से क्यों इकट्ठा हो रहे हैं? पंजाब, हरयाणा और दिल्ली की सरकारें इस आंदोलन को लेकर क्या बयानबाज़ी कर रहे हैं? अगर कुछ बड़ा धरना प्रदर्शन होता है तो इस महामारी में यह कदम कितना विनाशकारी होगा?
केंद्र सरकार के तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ एकबार फिर किसान आंदोलन को मुख्य धारा की खबरों में लाने की कोशिश की जा रही है। इस दौरान कोरोना के खात्मे के लिए लगाए गए लॉकडाउन को धता बताते हुए हरियाणा के करनाल और पानीपत टोल प्लाजा पर हजारों किसान एकत्रित हुए। इन किसानों का काफिला राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से सटी सीमाओं पर 26 मई को विरोध प्रदर्शन करने के लिए आगे बढ़ रहा है। बता दे कि किसान कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे आंदोलन के 6 महीने पूरे होने पर 26 मई को ‘काला दिवस’ के रूप में मनाएंगे।
किसानों का कहना है कि कृषि कानूनों के खिलाफ जो पिछले साल नवंबर में दिल्ली की सीमाओं पर विरोध शुरू किया गया कोरोना की दूसरी लहर के दौरान खत्म होता दिख रहा है। पंजाब के तरणतारन जिले से 20 मई को किसानों का एक बड़ा काफिला दिल्ली के लिए रवाना हुआ और एक प्रमुख किसान नेता ने वादा किया है कि 26 मई के विरोध प्रदर्शन में भाग लेने के लिए राज्य के एक जिले से हर हफ्ते लगभग 2,000 वाहनों का काफिला दिल्ली के लिए रवाना होग।
वही देश के 12 प्रमुख विपक्षी दलों ने केन्द्र के कृषि कानूनों के खिलाफ 26 मई को संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा आहूत देशव्यापी प्रदर्शन को अपना समर्थन देने की घोषणा की है। एक संयुक्त बयान के ज़रिये यह जानकारी साझा की गई है। साझा किये गए बयान में कहा गया है, ” हमने 12 मई को संयुक्त रूप से प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर कहा था: महामारी का शिकार बन रहे हमारे लाखों अन्नदाताओं को बचाने के लिये कृषि कानून निरस्त किये जाएं ताकि वे अपनी फसलें उगाकर भारतीय जनता का पेट भर सके।”
महामारी के इस भयावह दौर में भी किसानों ने कहा है कि वो आंदोलन को नहीं छोड़ सकते। अब हम अगर राज्य सरकरो की बात करें तो कोरोना वायरस के मामलों में उछाल के कारण हरियाणा में इस वक्त लॉकडाउन लगा हुआ है और हरयाणा सरकार ने ग्रामीण इलाकों में कोरोना की रफ्तार में वृद्धि के लिए हरियाणा की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे किसानों को जिम्मेदार ठहराया हैं। वही पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा, कृषि कानूनों के मुद्दे पर मैं किसानों के साथ, पर कोविड प्रोटोकाल के उल्लंघन की इजाजत नही। साथ ही में उन्होंने बीकेयू यानी भारतीय किसान यूनियन से आग्रह किया हैं कि कोविड के माहौल में विरोध प्रदर्शन ना करें, यह सुपर-स्प्रेडर साबित हो सकता है। इस काला दिवस पर दिल्ली के मुख्यमंत्री द्वारा अभी तक कोई बयान नहीं आया है, वो शायद आगामी पंजाब चुनाव के नफा नुक्सान को सोचने में व्यस्त है।
भाजपा ने सरकार के सात साल पूरे होने पर कोई भी कार्यक्रम करने से मना कर दिया है। ठीक इसी तर्ज पर किसान संगठनों को भी एक दफा विचार विमर्श कर लेना चाहिए क्यूंकि यह वक़्त किसी आंदोलन के छह महीने पूरे होने पर देशव्यापी धरना करने का नहीं हैं । इस महामारी के दौरान किसानो को सरकार के किसान कानूनों के खिलाफ विरोध करने का नया तरीक़ा ढूंढना चाहिए। चौराहे पर इकट्ठा होकर पुतला फूकने के बजाय घर पर ही रह कर कुछ करना चाहिये। बाकी विरोध करने का अधिकार तो सबको है ही मगर इस माहौल में विरोध करते वक़्त यह भी ध्यान रखना चाहिए की राजनीति, धरना और विरोध से ज्यादा ज़रूरी हैं, जान का होना। जैसा की एक दफा हमारे माननीय ने कहा था, जान है तो जहां है।