Taapsee Pannu’s Rashmi Rocket streaming on Zee5 from October 15. The sports drama sheds light on the gender test that women athletes are forced to go through.
रात का वक्त है, एक पुलिस की जीप लड़कियों के हॉस्टल के बाहर आकर रूकती है। उस जीप में से दो पुलिस वाले उतरते है और हॉस्टल में घुसते चले आते है, सामने से एक लड़की उन दोनो को रोकने की कोशिश करती है मगर वो नहीं रूकते। वो बस एक सवाल पूछते हुए आगे बढ़ते जाते है, ”कौन से कमरे में है वो लड़का?” उनको रोकने की कोशिश करते हुए लड़की जवाब देती है, “यहाँ कोई लड़का नहीं है।“ पुलिस वाले दोबारा वही सवाल पूछते है और कमरों के नज़दीक पहुँच जाते है। वहाँ मौजूद एक लड़की एक कमरे की तरफ इशारा करती है, पुलिस वाले दरवाज़ा खुलवाते है और तापसी का किरदार यानी रश्मि दरवाज़ा खोलती है। इसके बाद दो पुरूष पुलिस वाले एक महिला को लड़का बोलते हुए जबरदस्ती कमरे से उठा जेल ले जाते हैं। और एक महिला के साथ हुई इस जबरदस्ती और भेदभाव वाले दृष्य से शुरू होती है आकर्ष खुराना द्वारा निर्देशित फिल्म रश्मि रॉकेट।
फिल्म की कहानी एक एथलीट की है मगर यह पूरी फिल्म सिर्फ एक स्पोर्टस ड्रामा नहीं है। कहानी गुजरात के भुज में रहने वाली रश्मि की है जो बचपन से ही बहुत तेज़ दौड़ती है, इतनी तेज़ दौड़ती है कि गाँव के लोग उसे रॉकेट बुलाते है। रश्मि लड़को जैसे कपड़े पहनती है, बुलेट भी चलाती है और इसी वजह से गाँव वाले उसे रॉकेट के अलावा ‘लौंडा है या लड़की’ बोल के मखौल उड़ाया करते हैं। यही लौंडा और लड़की वाली चीज़ इस फिल्म का मुख्य कॉन्फ्लिक्ट हैं, पूरी फिल्म इसी जेंडर भेदभाव के इर्द-गिर्द घूमती है। खैर,इन सब भेदभावों के बावजूद रश्मि भागती है और इतना अच्छा भागती है कि 2014 के एशियन गेम्स में 3 मेडल जीत जाती हैं। मगर इस जीत की खुशी ज्यादा देर तक नहीं रहती क्योंकि दौड़ के खेल के बाद शुरू होता है एसोसिएशन का खेल। एसोसिएशन रश्मि का जेंडर टेस्ट यानी लिंग परिक्षण का आदेश देता हैं और इसके बाद रश्मि की असली लड़ाई शुरू होती हैं। जेंडर टेस्ट के बाद रश्मि पर एसोसिएशन द्वारा बैन लगा दिया जाता हैं। आगे रश्मि अपना बैन हटवा पाती हैं या नहीं? एसोसिएशन के खिलाफ रश्मि लड़ पाती है या नहीं? इन सवालों के जवाब जानने के लिए आपको ज़ी5 पर यह फिल्म देखनी होगी।
फिल्म में मौजूद एक्टर और एक्टिंग की बात करें तो भले ही फिल्म को तापसी की फिल्म कहकर बेचा जा रहा है मगर इस फिल्म में अभिषेक बनर्जी ने जो किया है उसके आगे कोई नहीं टिक पाया हैं। अभिषेक इस फिल्म में इशीत नाम के एक वकील के किरदार में नज़र आए हैं। एक ऐसा वकील जो अनुभवहीन है मगर अपनी दलील और केस के फैक्ट्स को लेकर एकदम सिरियस, अभिषेक ने इस किरदार को इतनी बखूबी से निभाया है कि आप एक वक्त के बाद रश्मि नहीं बल्कि इशीत के केस जीतने की दुआ करने लगते हैं। फिल्म में प्रियांशु पेन्युलि भी है जिन्हे मिर्जापुर के ‘ये भी ठीक है’ वाले तकियाकलाम से लोगो के बीच एक पहचान मिली मगर इस फिल्म में एक फौजी की तरह चाल चलने और तापसी यानी रश्मि के दोस्त-पति के रूप में उनका साथ देने के अलावा और कुछ खास करने को उनके हाथ नहीं आया। बाकी फिल्म में तापसी की माँ के किरदार में सुप्रिया पाठक भी है जिनके गुजराती लुक को देख कर ‘गोलियों की रासलीला-रामलीला’ की याद आती हैं।
फिल्म की कहानी की बात करे तो फिल्म एक ऐसे विषय की बात करती हैं जिसपर शायद ही हिंदी सिनेमा में किसी ने कभी बात की हो। फिल्म किसी एक एथलीट की जीवनी पर आधारित नहीं है बल्कि यह फिल्म भारत में कई एथलीट्स के साथ जेंडर टेस्ट जैसी पुरातन प्रक्रिया के चलते हुए भेदभाव से प्रेरित हैं। फिल्म के लेखकों (नन्दा पेरियासामी, अनिरुद्ध गुहा और कनिका ढिल्लों) ने इस विषय पर एक अच्छी रिसर्च की है जिसका अंदाज़ा आपको फिल्म के संवादो को सुनते हुए लग जाता हैं। हालांकि फिल्म की ओवरऑल कहानी इसके किरदारों से इमोशनली अटैच कर पाने में विफल नज़र आती हैं।
आकर्ष खुराना के निर्देशन की बात करे तो फिल्म के स्पोर्ट्स वाले सीन को काफी मज़ाकिया ढंग से निर्देशित किया गया हैं। आकर्ष से हम बेहतर निर्देशन की उम्मीद कर रहें थे क्योंकि इस से पहले हम उनकी इरफान खान वाली ‘कारवां’ देख कर आए थे। स्पोर्ट्स वाले सीन में एड्रेनालाईन रश वाला फैक्टर गायब होने की वजह से फिल्म खत्म होने के बाद हमें सिर्फ इस फिल्म का कोर्ट रुम ड्रामा याद रहता हैं। और फिल्म में मौजूद आइटम सॉन्ग बेफिज़ूल लगता हैं।
इस फिल्म के लिए निसंदेह तापसी ने बहुत मेहनत की हैं मगर फिल्म में एक मोनोलॉग को छोड़ और कुछ भी नया नहीं लगता। दरअसल तापसी ने अपना बेंचमार्क इतना ऊँचा सेट कर लिया है कि अब उनका कॉम्पटीशन खुद से ही हैं। इसमें कही कोई दो राय नहीं कि तापसी अच्छे मैसेज वाली कहानियाँ चुनती हैं मगर अब खुद के ही बनाए स्टीरियोटाइप से बचना है तो तापसी को अच्छे मैसेज के साथ-साथ थोड़े अलग टाइप के किरदारों वाली स्र्किप्ट चुननी होगी। बाकी रश्मि रॉकेट फिल्म को इसके द्वारा उठाए मैसेज के लिए एक दफ़ा तो ज़रूर देखना चाहिए। फिल्म निर्माताओं ने एक अच्छे मैसेज वाली फिल्म बनाने की कोशिश की हैं, अब इस फिल्म को देख उस मैसेज को समझने की कोशिश करने की बारी आपकी हैं। क्योंकि फिल्म का अच्छा बुरा होना तो परिणाम हैं, कोशिश करना ही मुख्य काम हैं।
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