Friday, December 13
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सरदार उधम: अंदर तक झकझोर देने वाली बॉयोग्राफिकल फिल्म

Sardar Udham movie review: Shoojit Sircar’s Sardar Udham is now streaming on Amazon Prime Video.

Vicky Kaushal as Sardar Udham Singh

हम जब देश की आज़ादी के बारे में सोचते है तब हमारे दिमाग में कुछ स्वतंत्रता सेनानी, कुछ अंग्रेज और कुछ क्रांतिकारियों की तस्वीर घूमती हें। उन्ही कुछ क्रांतिकारियों में से एक क्रांतिकारी थे, सरदार उधम सिंह। शहीद भगत सिंह के बारे में तो हम सबको पता है मगर उधम सिंह के बारे में हम बहुत कम लोग जानते हैं। हम सरदार उधम सिंह के बारे में बस इतना ही जानते है कि यह वो इंसान है जिसने जलियांवाला बाग कांड का बदला लेने के लिए 1919 में रहे पंजाब के गवर्नर माइकल ओ डायर को लंडन जाकर पॉइंट ब्लैंक की दूरी से गोली मारी थी। शूजित सरकार द्वारा निर्देशित यह फिल्म उधम सिंह के स्वभाव, भगत सिंह के साथ उनके रिश्ते, लंदन में डायर को मारने से पहले बिताया वक्त और ऐसे ही उधम सिंह की ज़िन्दगी से जुड़े कई किस्सों को हमारे सामने पेश करती हैं।

इस फिल्म की शुरूआत एक जेल से होती हैं, जहाँ एक लम्बे बाल और लम्बी दाढ़ी वाला इंसान दिखता हैं। थोड़ी देर बाद वहाँ एक थानेदार आता है ताला खोलता है और उस लम्बे बाल-दाढ़ी वाले इंसान से कहता हैं- “शेर सिंह आज़ादी मुबारक हो। उठ जा…उठ जा। देश वाली आज़ादी थोड़ी मिलनी, ये गरीबों वाली ले ले।“ इसके बाद आप उस शेर सिंह की आवाज़ सुनना चाहते है मगर अगले पाँच मिनट तक आपको सिर्फ उस वक्त का पंजाब दिखाया जाता है। आगे इस पूरी फिल्म का ट्रीटमेंट ऐसा ही रहता है, फिल्म के निर्माता चाहते है कि आप इस फिल्म के द्वारा सिर्फ उधम सिंह को ना जाने बल्कि उस वक्त के हालातों को भी महसूस करें। फिल्म जितनी शांति से अपनी कहानी बढ़ाती हैं इसके उलट आपके मन में फिल्म के द्श्यों को देखते हुए अशांति-असहजता फैलने लगती हैं और यही इस फिल्म की सबसे सुंदर और खास बात हैं।

फिल्म की कहानी को बताते हुए शूजित सरकार किसी भी हड़बड़ी में नज़र नहीं आते और यही कारण है कि फिल्म थोड़ी धीमी चलती है मगर बोरिंग नहीं लगती। शूजित सरकार ने एक इंटरव्यू में बताया था कि इस फ़िल्म को बनाने के लिए 20 साल पहले दिल्ली से मुम्बई आए थे और आयरनी देखिए उधम सिंह को भी अपना मकसद पूरा करने में 20 साल लगे थे। वैसे इस फ़िल्म को पूरा देखने के बाद इस बात का सुखद एहसास होता है कि शूजित के 20 साल का इंतज़ार एक अच्छे फल के रूप में सामने आया हैं। फ़िल्म में संवाद कम हैं मगर शुभेंदु भट्टाचार्य और रितेश शाह ने इतने बखूबी से लिखा हैं और अविक मुखोपाध्याय के कैमरे से वो चीज़ें इतने सुंदर ढंग से सामने पेश की गई है कि आपको ना संवादों की ज़रूरत पड़ती है और ना ही आपको कभी यह एहसास होता है की 1919 से 1940 के बीच हुए इस घटनाक्रम को 2020-21 में शूट किया गया हैं।

Real and Reel Sardar Udham Singh

अब बात उधम सिंह का किरदार निभा रहे विक्की कौशल की करें तो उन्होंने इस किरदार को बेहतरीन तरीके से निभा कर जीवंत कर दिया हैं। विक्की को उधम सिंह के रूप में देख ऐसा लगता हैं मानो वो उधम सिंह को कई सालों से जानते हो और उन्होंने उनकी चाल-ढाल को देख रखा हो। जलियांवाला नरसंहार के दृश्य में विक्की को टूटता- बिलखता देख हमें मसान फ़िल्म का वो युवा विक्की याद आता हैं। बाकी इस फ़िल्म में भगत सिंह के छोटे से रोल में अमोल पलाशर भी हैं। इस फ़िल्म की खास बात यह भी है कि इस फ़िल्म को देखते हुए आप किसी हीरो की तलाश नहीं कर रहे होते क्योंकि आपका पूरा ध्यान उस वक़्त फ़िल्म में होने वाली घटनाओं पर केंद्रित रहता हैं।

फ़िल्म धीमे शुरू ज़रूर होती है मगर इसलिए होती हैं ताकि आप इस फ़िल्म का क्लाइमेक्स सम्भाल सकें। ये फ़िल्म आपके धैर्य और साहस की परीक्षा लेती हैं। फ़िल्म का क्लाइमेक्स आपको पूरे तरीके से झकझोर के रख देता हैं और विक्की कौशल का उधम सिंह के रूप में अपने वकील से कहा डॉयलोग आपके मन मे घर कर जाता हैं-
“टेल पीपल आई वॉज़ अ रिवॉल्यूशनरी”

इस फ़िल्म को ज़रूर देखना चाहिए सिर्फ इसलिए नहीं देखना चाहिए कि ये उधम सिंह की अनसुनी कहानी दिखाती हैं। बल्कि इस फ़िल्म को इसलिए देखना चाहिए ताकि आपको यह पता लग सके कि किसी की कहानी बताते हुए क्या-क्या बताना और करना चाहिए। यह हिंदी सिनेमा की कई सालों तक याद रखी जाने वाली फ़िल्म हैं।

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