The society has a bigger responsibility to play when it comes to protecting women journalists, said KG Suresh, the Vice Chancellor of Makhanlal Chaturvedi University of Journalism and Communication. The MCU Bhopal VC was speaking on the occasion of a seminar in the college.
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भोपाल में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के संदर्भ में पीआईबी और महिला प्रेस क्लब के सम्मिलित सहयोग से विशेष संगोष्ठी का आयोजन किया गया. संगोष्ठी का विषय था “पत्रकारिता और संचार के क्षेत्र में महिलाओं की उपस्थिति”
कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलित करते हुए सरस्वती वंदना के साथ हुई
उसके बाद संगोष्ठी में आए हुए विभिन्न वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त किए. संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे कुलपति प्रो.के.जी.सुरेश (MCU Bhopal VC KG Suresh) ने कहा कि आज मेरा बोलने का दिन नहीं है, आज हम आप सफल महिला पत्रकारों की सफलता की गाथा सुनने के लिए यहाँ आए थे. उन्होंने महिला पत्रकारों पर बात करते हुए कहा कि यह हमारे समाज की ज़िम्मेदारी बनती है कि महिला पत्रकारों की सुरक्षा की भावना का ध्यान रखे, अगर एक महिला पत्रकार के साथ दो पुलिसकर्मियों के चलने की जरूरत पड़े, तो ये बात हमारे लिए ठीक नहीं है. महिलाओं को भी चाहिए कि वे अपने साथी महिला अधिकारों के प्रति संवेदनशील रहें.
उन्होंने पत्रकारिता क्षेत्र में महिलाओं के संघर्ष पर बात करते हुए कहा कि संघर्ष के साथ सफलता हासिल करना बड़ी बात होती है, यह समस्या नहीं चुनौती है. आज भी कई जगह ये स्थिति है कि समान पद के लिए महिलाओं को पुरुष से कम वेतन दिया जाता है, ऐसा नहीं होना चाहिए. PIB Bhopal के अपर महानिदेशक प्रशांत पाठवारे (Prashant Pathware) ने पत्रकारिता के क्षेत्र में महिलाओं की स्थिति पर बात करते हुए कहा कि महिला पत्रकारों को टेक्निकल चैलेंजेज के साथ- साथ और भी कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. उन्होंने कहा कि मीडिया के क्षेत्र में अवसर तो बहुत है, लेकिन साथ साथ चुनौतियां भी है। अगर हम महिलाओं के योगदान को देखें चाहे वो रेडियो हो या टेलीविजन हर जगह महिलाएं खुद को सिद्ध कर रही हैं.
Percentage of women journalists have increased in big media houses
लेकिन ऐसी भी स्थितियां हैं जिन पर गौर करना ज़रूरी है, न्यूज लॉन्ड्री (Newlaundary) नामक एक वेबसाइट ने पिछले वर्ष कुछ आंकड़े शेयर किए जिसमें बताया गया की जो बड़े समाचार संस्थान हैं जैसे अमृत बाजार पत्रिका, हिंदुस्तान टाइम्स आदि उनमें माहिला पत्रकारों द्वारा मुख्य पृष्ठ पर लिखे गए लेखों की संख्या 2014 में 28 फीसद थी, और 2018 ये बढ़कर 32 फीसदी हुई। उन्होंने आगे अपना अनुभव साझा करते हुए कहा कि डीडी न्यूज में 13-14 वर्ष कार्य किया है जिसमें महिला पत्रकारों का योगदान 40-50 फीसद था , खासतौर पर न्यूज एंकर लगभग 60% थी जो काफी अच्छा था। अगर हम देखें तो महिला पत्रकारों का योगदान बिजनेस रिपोर्टिंग में अच्छा है लेकिन मध्य प्रदेश की स्थिति काफी चिंताजनक है। प्रदेश में कुल 1157 पत्रकार थे जिनमें सिर्फ 57 महिलाएं थी। इस स्थिति को सुधारने के लिए जरूरी है की सभी मीडिया संस्थान समान अवसर दें.
वरिष्ठ पत्रकार दीप्ति चौरसिया (Journalist Dipti Chaurasiya) ने कहा कि महिलाओं के लिए चुनौतियां तब भी थी जब पत्रकारिता रेडियो और अख़बारों से होती हुई टेलीविजन पर आ रही थी, चुनौतियां अब भी हैं. लेकिन पहले और अब की स्थिति में काफी फर्क है. हमने अपने शुरूआती दौर में समानता को लेकर काफी संघर्ष किया है, मौजूदा वक्त में समानता ठीक- ठाक मिली है लेकिन पूरी नहीं मिली है. हम महिलाओं के सामने व्यक्तिगत चुनौतियां भी होती हैं जो हम सबसे नहीं कह पाते. उन्होंने मौजूदा दौर की बात करते हुए कहा कि आज तो हर जगह लड़कियां दिखाई देती हैं समय पहले से बहुत बदल चुका है.
पत्रकार रुबी सरकार (Journalist Rubi Sarkar) ने कहा कि कोरोना काल में महिला समूहों ने कंधे से कंधा मिलाकर काम किया, वो चाहे पत्रकारिता का क्षेत्र हो या समाज और किसानी से जुड़े कार्य हो. हर जगह पर महिलाओं ने अपना सहयोग दिया. उन्होंने ग्रामीण पत्रकारिता पर बात करते हुए कहा कि शहर केंद्रित समाचार पत्र गाँव की रिपोर्टिंग सही ढंग से नहीं कर पाते हैं, इस पर गहन चिंतन करने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि पत्रकारिता के विद्यार्थियों को ग्रामीण पत्रकारिता की प्रैक्टिकल ट्रेनिंग बहुत ज़रूरी है क्योंकि ग्रामीण आधारित पत्रकारिता हमारे सामाजिक विकास के लिए बेहद ज़रूरी है. अगर हम गाँव में पत्रकारिता करने जाते हैं तो खाने- पीने की समस्या भी नहीं होती क्योंकि गाँव में हर घर में कुछ ना खाने को मिल ही जाता है.
संगोष्ठी की मुख्य वक्ता शिफाली पांडे ने अपना वक्तव्य शुरू करते हुए कहा कि हम पत्रकारों से पूछा जाता है कि ‘क्या खबर है’, और आज मैं खुद अपनी खबर देने यहाँ आई हूँ. उन्होंने अपने पत्रकारिता जीवन की चुनौतियों का ज़िक्र करते हुए कहा कि मेरे लिए सबसे बड़ी चुनौती थी कि मैं Political Reporter बनना चाहती थी. जब भीड़ में नेताओं के इंटरव्यू लेने जाना पड़ता था तो मेरे लिए चुनौती होती थी कि किसी हांथ मेरे कंधे पर न लगे, किसी की कुहनी मेरे जिस्म के किसी गलत हिस्से पर न लग जाए. उन्होंने आगे कहा कि पत्रकारिता में वक़्त की बहुत ज़रूरत होती है, महिलाओं के लिए शादी, बच्चों की परवरिश, मीटिंग और प्रोफेशनल लाइफ सब कुछ व्यवस्थित करना होता है. उन्होंने अपनी बात ख़त्म करते हुए कहा कि हम महिला पत्रकारों को मजबूत कंटेंट के साथ खुद को पेश करना है और साथ ही ग्रामीण पत्रकारिता (Village Journalism) का भी खयाल रखना है.
माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय (MCU Bhopal) की अध्यापिका उर्वशी परमार ने महिलाओं की शिक्षा पर बात करते हुए कहा कि भारत में स्त्री शिक्षा (Women Education in India) सावित्रीबाई के द्वारा और महिलाओं के लिए मीडिया शिक्षा एनी बेसेन्ट (Annie Besant) के द्वारा शुरू की गई, दोनों महिला थी. उन्होंने कहा कि महिला घर, बाहर हर जगह अपना दायित्व पूरी तरह से निभा रही हैं लेकिन आज भी ये नहीं नकारा जा सकता कि स्त्रियाँ पितृसत्तात्मक समाज में जी रही हैं. उन्होंने कहा कि अगर हम Media Education के क्षेत्र की बात करें तो भारत के कई विश्वविद्यालयों में महिलाएँ पत्रकारिता के विभागों को नई ऊंचाइयां प्रदान की हैं. उन्होंने मीडिया छात्राओं को संबोधित करते हुए कहा कि अगर स्थायित्व चाहिए तो संयम और ध्यानपूर्वक खुद को ढालना होगा और कड़ी मेहनत से सफलता हासिल करनी होगी. अगर स्वयं से स्वयं को ढूंढ़ने की कोशिश जारी रहेगी तो सफलता अवश्य ही मिलेगी.
कार्यक्रम का संचालन विद्यार्थी दिव्या रघुवंशी कर रही थी. आभार प्रदर्शन कुलसचिव डाॅ.अविनाश वाजपेई ने किया.
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