How did South India get ahead of North India in the race of economic, political, and social development? Let’s look at some of the points that show the South Indian states’ great development model.
जब हम भारत जैसे विशाल देश की कल्पना करते हैं तो हमारे दिल में एक पौराणिक सभ्यता, एक समृद्ध संस्कृति, और एक सामर्थवान समाज की तस्वीर आती है। लेकिन जब हम ज़मीनी हक़ीक़त की ओर नज़र दौड़ाते हैं तो हमारी कल्पना को ज़बरदस्त ठेस पहुँचता है। वर्षों से अनेकता में एकता की बात करने वाला राष्ट्र क्या सच में एकता की माला को हर पैमाने पर गुथने में सफल रहा है? ये बात हम दावे के साथ नहीं कह सकते। क्योंकि जब हम भारत के भूगोल को ध्यान से देखते हैं तो नॉर्थ और साउथ, यानी उत्तर और दक्षिण के राज्यों, में एक बड़ा अंतर दिखाई देता है। जहां दक्षिण के राज्य विकास के हर पैमाने पर देश के बाक़ी क्षेत्रों से अग्रणी नज़र आते हैं, वहीं उत्तर भारत (ख़ासकर हिंदी पट्टी) आज भी बीमारु के तमग़े तो अपने आप से दूर हटाने में सफल नहीं रहा है। विशेषज्ञों की माने तो केरल और पुडुचेरी जैसे राज्यों का स्वास्थ्य ढाँचा और शिक्षा प्रणाली पूर्वी यूरोप के कुछ देशों को टक्कर दे रहा है। वहीं बिहार, उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, पश्चिम बंगाल, और राजस्थान जैसे राज्य आज भी तरक़्क़ी के बुनियादी सवालों जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा, बिजली, स्वच्छ जल, आदि का उत्तर ढूँढ रहे हैं।
हालाँकि ऐसा नहीं है कि दक्षिण के राज्यों में कमियाँ नहीं हैं लेकिन उत्तर की तुलना में जिस तरह तमिलनाडु, कर्नाटक, और केरल जैसे राज्यों ने तरक़्क़ी की है वह काफ़ी सराहनीय है। तो आज हम इस विडियो में इसी बात पर चर्चा करेंगे कि आख़िर वो कौन से कारण हैं जिसकी वजह से दक्षिण भारत ने तरक़्क़ी की राह पर उत्तर भारत को पीछे छोड़ने में सफल रहा।
- भौगोलिक कारण: दक्षिण भारत, जिसे हम प्रायद्वीपीय भारत भी कहते हैं, की तरक़्क़ी में भूगोल की एक अहम भूमिका है। समुद्री तट के नज़दीक स्थित होने के कारण, इन राज्यों को कई फ़ायदे होते हैं। समुद्र वहाँ के लोगों के लिए मछली पालन, व्यापार, पर्यटन, आदि के क्षेत्र में रोज़गार के कई अवसर पैदा करते हैं। साथ ही समुद्री पहुँच एक क्षेत्र को संसाधन सम्पन्न भी बनाते हैं।
- राजनीतिक कारण: दूसरा कारण राजनीतिक है — वहाँ के सरकारों के कुछ सकारात्मक निर्णय। केरल और तमिलनाडु के सरकारों द्वारा बनाए गए कई बेहतरीन क़ानूनों ने वहाँ तरक़्क़ी की नई परिभाषा गढ़ी। 1957 में पहली बार कम्युनिस्ट सरकार आने के बाद केरल में भूमि सुधार अध्यादेश जैसे एक क्रांतिकारी कदम लिया गया, जिस वजह से राज्य के क़रीब पंद्रह लाख गरीब घरों का कायाकल्प हुआ। इसके बाद सार्वजनिक अनाज वितरण का प्रभावी कार्यान्वयन ने भी निम्न आय वाले घरों को फ़ायदा पहुँचाया। राज्य में बड़े स्तर पर मेडिकल कॉलेज खोले गए, शिक्षकों के आय में वृद्धि की गयी, स्कूलों-अस्पतालों का जमकर निर्माण किया गया, लड़कियों की शिक्षा को ख़ास तवज्जो दिया गया। दक्षिण भारत के राज्यों द्वारा लिए गए ऐसे कई कदम उन्हें विकास के राह पर आगे ले गए। उत्तर भारत में राज्य सरकारों के ढीले रवैए के कारण विकास की गति काफ़ी धीमी रह गई।
- ऐतिहासिक कारण: भारत में उत्तर और दक्षिण के बीच की असमानता के लिए एक तर्क ये भी दिया जाता है कि उत्तर भारत में गुप्त वंश के पतन के बाद कोई समृद्ध साम्राज्य का उदय नहीं हुआ। जबकि दक्षिण में कई विख्यात साम्राज्यों का उदय हुआ। यहाँ तक कि मुग़ल भी समूचे दक्षिण को अपने क़ब्ज़े में नहीं कर पाए थे। इस वजह वहाँ के मंदिरों में काम लूटपाट हुई।
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