Saturday, September 7
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राम प्रसाद बिस्मिल की क्रांतिकारी गाथा। Story of Ram Prasad Bismil and Ashfaqulla Khan

भारत की पवित्र भूमि कभी भी वीरों से महरूम नहीं रही। जब जब भारत माता पर संकट आया है, उनके संतानों ने माता की रक्षा हेतु अपने प्राण न्योछावर किए हैं। इस लेख में हम राम प्रसाद बिस्मिल(Ram Prasad Bismil) की कहानी के बारे में चर्चा करने जा रहे हैं।

Ram Prasad Bismil image.
Ram Prasad Bismil image.

फिर चाहे प्राचीन काल में सम्राट अशोक हो या मध्य काल में महाराणा प्रताप और छत्रपति शिवाजी हो। अंग्रेजों के ख़िलाफ़ तो देशभक्तों को पूरी टोली ने हिंदुस्तान की आबरू क़ुर्बान होने से बचाया था।
आज हम भारत की धरती पर जन्मे वैसे ही एक महान क्रांतिकारी के बारे में जानेंगे जिन्होंने अपनी वीरता से अंग्रेज़ी सेना के छक्के छुड़ा दिए थे।

शुरुआत एक कहानी से करते हैं। बात सन 1925 की है। भारत के कुछ वीर नौजवानों ने मिलकर एक क्रांतिकारी संगठन बनाया जिसका नाम था- Hindustan Republican Association (HRA). 9 अगस्त को HRA के दो साथियों ने मिलकर एक ट्रेन लूटने की योजना बनाई। ट्रेन क्यों लूटना था? क्योंकि आज़ादी की लड़ाई में अंग्रेजों से लड़ने के लिए बंदूक़ें चाहिए थी जिसके लिए पैसों की ज़रूरत थी। HRA के सदस्यों ने मिलकर ट्रेन लूट को अंजाम दिया जिसे इतिहास में काकोरी काण्ड के नाम से जाना जाता है। इस घटना ने अंग्रेज़ी हुकूमत की नींद उड़ा दी थी।

जिन दो साथियों ने इसका प्लान बनाया था वो हैं असफ़ाकउल्लाह खान और राम प्रसाद बिस्मिल(Ram Prasad Bismil)। आज हम राम प्रसाद को याद कर रहे हैं क्योंकि कल उनकी जन्म जयंती थी। 11 जून 1897 में उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में भारत माँ के इस सच्चे सपूत का जन्म हुआ था। स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ साथ वो एक कवि भी थे जिन्होंने अपनी हिन्दी और उर्दू में रचित कई देशभक्ति कविताओं से लोगों के दिलों में आज़ादी के प्रति जोश जगाया।

Ram Prasad Bismil and Ashfaqulla Khan photo.
Ram Prasad Bismil and Ashfaqulla Khan photo.

राम प्रसाद (Ram Prasad Bismil)के पिता उन्हें उर्दू सिखाने के लिए एक मौलवी के पास भेजते थे और हिंदी खुद पढ़ाते थे। वो बचपन से ही आर्य समाज से जुड़े रहे हैं। जब वो 18 वर्ष के हुए, उन्हें अपने बड़े भाई के मृत्यु की खबर मिली जिससे व्यथित होकर उन्होंने एक कविता लिखी जिसका शीर्षक था – ‘मेरा जन्म’। अगले साल अपनी स्कूली शिक्षा छोड़कर राम प्रसाद ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सदस्यता ली और कूद पड़े आज़ादी के आंदोलन में माँ भारती की आबरू बचाने।

राम प्रसाद बिस्मिल संगठन का नाम

बिस्मिल ने ‘मातृवेदी’ नामक एक क्रांतिकारी संगठन बनाया जिसमें उनका साथ दिया गेंडा लाल दीक्षित ने। इन दोनों ने मिलकर इटावा, मैनपुरी, आगरा और शाहजहाँपुर से नौजवानों को इकट्ठा किया। 1918 में तीन दफ़ा इन सब ने अंग्रेजों का सामान लूटा जिसके बाद ये लोग पुलिस के निशाने पर आ गए। अगले दो साल राम प्रसाद को छिप कर रहना पड़ा। फ़रवरी 1920 में इस मामले में कोर्ट ने सभी को इस लिखित शर्त पर बरी किया कि ये लोग अब किसी क्रांतिकारी गतिविधि में भाग नहीं लेंगे।

1921 में राम प्रसाद बिस्मिल(Ram Prasad Bismil) ने प्रेम कृष्ण खन्ना, असफ़ाकउल्लाह खान, मौलाना हसरत मोहानी और अन्य नौजवानों सहित पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव कांग्रेस की जेनरल बॉडी मीटिंग से पास करवाया। राम प्रसाद के नौजवान साथियों की आवाज़ के सामने महात्मा गाँधी भी चित्त पड़ गए। चौरी चौरा की हिंसा के बाद जब गाँधी जी ने असहयोग आंदोलन को तत्काल रोक देने का आदेश दिया, कांग्रेस के गया सेशन में इन्होंने बापू का पुरजोर विरोध किया। जब वो नहीं माने तब जनवरी 1923 में राम प्रसाद ने HRA का गठन किया।

अगले दो साल तक राम प्रसाद, सचीन्द्र नाथ संयाल, जदु गोपाल मुखर्जी और HRA के अन्य मेंबर्स ने पार्टी के विस्तार के लिए देश के विभिन्न जगहों में लोगों को mobilise करना किया। बाद में इस संगठन में चंद्रशेखर आज़ाद, बनवारी लाल, भगत सिंह, राजेंद्र नाथ लहिरी, राजगुरु, और मुकुन्दी लाल जैसे नाम जुड़े। इन्ही सब साथियों ने मिलकर काकोरी ट्रेन लूट को अंजाम दिया। हालांकि बाद में बिस्मिल को गिरफ्तार कर लिया गया और 19 दिसंबर, 1927 को उन्हें गोरखपुर की जेल में फांसी पर चढ़ा दिया गया।

राम प्रसाद बिस्मिल पुस्तकें (Ram Prasad Bismil Books)

एक साहित्यकार के रूप में भी बिस्मिल(Ram Prasad Bismil) खूब प्रचलित हुए। अपने जीवनकाल में उन्होंने कुल 11 किताबें लिखी जिसे अंग्रेजी हुकूमत ने जब्त कर ली थी।
बिस्मिल अजिमाबादी की कविता-
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है ज़ोर कितना बाजु-ए-कातिल में है।
को राम प्रसाद ने ही जीवंत किया था। ये कविता अंग्रेज़ी हुकूमत के ख़िलाफ़ एक अमर गाथा के रूप में उभरा।

आज राम प्रसाद बिस्मिल(Ram Prasad Bismil) का शरीर हमारे बीच नहीं हैं। लेकिन एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में, क्रांतिकारी के रूप में, माँ भारती के एक सच्चे सपूत के रूप में आज भी हमें राष्ट्र सेवा करने को प्रेरित कर रहे हैं। हमें अपने पुरखों पर नाज़ है जिन्होंने हमें आज़ाद भारत दिया। ऐसे महापुरुषों को शत शत नमन।

आज 12 जून है। इस दिन को विश्व बाल श्रम निषेध दिवस के रूप में मनाया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संघ के द्वारा 2002 में शुरू किए गए इस दिवस का मुख्य उद्देश्य है लोगों को बाल श्रम के ख़िलाफ़ जागरूक करना। आप भी जागरूक बनिए और अगर आपको कोई 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से काम करवाते हुए दिखे तो इसकी जानकारी पुलिस को दें। ऐसे बच्चों को स्कूल में होना चाहिए ना कि किसी ढाबे पर या फ़ैक्टरी में।

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